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फ़ारसी सूफ़ी काव्य
ऐ ग़म्ज़: ज़न कि तीर-ए-जफ़ा दर कमान-ए-तुस्तआहिस्तः ज़न कि गर्दन-ए-मा दर इ’नान-ए-तुस्त
अमीर ख़ुसरौ
शे'र
निकल कर ज़ुल्फ़ से पहुँचूँगा क्यूँकर मुसहफ़-ए-रुख़ परअकेला हूँ अँधेरी रात है और दूर मंज़िल है
अकबर वारसी मेरठी
ग़ज़ल
ये जो लगा है तीर मुझे ऐ कमान-ए-इश्क़महशर में देखियो यही होगा निशान-ए-इश्क़
ख़्वाजा रुक्नुद्दीन इश्क़
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फ़ारसी कलाम
शहीद-ए-तीर-ए-आँ तुर्कम कि अज़ अबरू कमाँ दारदख़दंग अज़ शुस्त-ए-आँ-ख़ुर्दम कि अज़ मिज़्गाँ सिनाँ दारद
रूमी
कृष्ण भक्ति सूफ़ी कलाम
तीर-ए-नज़र वो दिल पे खाए मन का हाल न पूछो हायनस नस में इक आग लगी है प्रेम की अग्नी कौन बुझाए
अब्दुल हादी काविश
कलाम
हदफ़ जिस का फ़क़त दिल हो मैं ऐसे तीर के क़ुर्बांबदन जिस से न घाइल हो मैं उस शमशीर के क़ुर्बां