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ग़ज़ल
तुम्हें हम अपना दिल समझे तुम्हें अपनी नज़र जानामगर तुम ने हमारे इ’श्क़ को ना-मो'तबर जाना
अज़ीज़ वारसी देहलवी
सूफ़ी कहावत
टहल करो फ़क़ीर की देवे तुम्हें असीस
टहल करो फ़क़ीर की, देवे तुम्हें असीसरैन दिन राज़ी रहो, युग में विस्वा बीस
वाचिक परंपरा
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कलाम
रौशन जहाँ है जिस से वो महफ़िल तुम्हें तो होदिल जिस को ढूँढता है वो मंज़िल तुम्हें तो हो
बह्ज़ाद लखनवी
ग़ज़ल
तुम्हें दुख भरी कहानी में सुनाऊँ क्या ज़बानीमरे अश्क कर रहे हैं मेरे ग़म की तर्जुमानी
नज़र भागलपूरी
पद
समझो तो ख़ालिक़ ने बख़्शा क्या क्या है सामान तुम्हें
समझो तो ख़ालिक़ ने बख़्शा क्या क्या है सामान तुम्हेंआँख दिया है देखे को बंद नेक सुने को कान तुम्हें
कवि दिलदार
कलाम
कोई मुश्किल था महशर में तुम्हें क़ातिल बना देनामगर कुछ सोच कर रहम आ गया जाओ दु'आ देना
क़मर जलालवी
शे'र
ख़ुद तुम्हें ये चाँद-सा मुखड़ा करेगा बे-हिजाबमुँह पे जब मारोगे तुम झुरमुट कताँ हो जाएगा
क़द्र बिलग्रामी
कलाम
मोमिन ख़ाँ मोमिन
कलाम
पुरनम इलाहाबादी
शे'र
अहक़र बिहारी
शे'र
अहक़र बिहारी
ग़ज़ल
अहक़र बिहारी
होरी
निज़ामुद्दीन गरीब नवाज बाँह गहे की तुम्हें को लाज
निज़ामुद्दीन गरीब नवाज बाँह गहे की तुम्हें को लाजज़री-ज़र-बख़्श महबूब-ए-इलाही सरस अमीर महा सरताज
शाह नियाज़ अहमद बरेलवी
शे'र
वहाँ तो हज़रत-ए-ज़ाहिद तुम्हें अच्छों से नफ़रत थीयहाँ जन्नत में अब किस मुँह से तुम लेने को हूर आए
मुज़्तर ख़ैराबादी
कविता
गाना- तुम्हें देखन को हिय है बहु व्याकुल।
तुम्हें देखन को हिय है बहु व्याकुल।कौन दिना तुम दरस देखै हो?