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शे'र
निकल कर ज़ुल्फ़ से पहुँचूँगा क्यूँकर मुसहफ़-ए-रुख़ परअकेला हूँ अँधेरी रात है और दूर मंज़िल है
अकबर वारसी मेरठी
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
दरख़ुर्द-ए-सरज़निश नबूवद जुर्म-ए-आशिकाँशमशीर-ए-नाज़ व तेग़-ए-अदा रा निगाह-दार
हसरत मोहानी
ग़ज़ल
तेरे कुश्ते नसीबा में सिकंदर से सिवा निकलेतेरी तेग़-ए-अदा में जौहर-ए-आब-ए-बक़ा देखा
अब्दुल्लाह बेदिल
फ़ारसी कलाम
मुश्ताक़-ए-जमालत रा अज़ तेग़-ए-अदा कश्तीअज़ तीर-ए-निगह ज़ख्मे दर ताइर-ए-जाँ कर्दी
अकबर वारसी मेरठी
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ना'त-ओ-मनक़बत
है मेरे ख़्वाजा की हर एक अदा अदा-ए-रसूलयही हैं आल नबी और यही ’अता-ए-रसूल
वजाहत हुसैन दाइम
ना'त-ओ-मनक़बत
अब्रू-ए-हूर के हों कुश्ते जनाब-ए-ज़ाहिदमैं हो गया शहीद-ए-तेग़-ए-अदा-ए-ख़्वाजा
तजम्मुल जलालपुरी
ग़ज़ल
औघट शाह वारसी
ग़ज़ल
वज्द में हों अहल-ए-नज़ारा मिले क़ातिल को दादकुछ तड़प ऐ कुश्ता-ए-तेग़-ए-अदा ऐसी तो हो
कैफ़ी हैदराबादी
फ़ारसी कलाम
ख़ून शुद दिल व पामाल-ए-अदा शुद चे बजा शुदनक़्श-ए-कफ़-ए-पा बूद हिना शुद चे बजा शुद
ग़ुलाम इमाम शहीद
कलाम
ख़ुद अदा मरती है जिस पर वो अदा कुछ और हैहै वफ़ा भी जिस पे सदक़े वो जफ़ा कुछ और है