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ना'त-ओ-मनक़बत
ये मंसब और ये दर्जा निज़ामुद्दीन चिश्ती काहै 'अर्श-ओ-फ़र्श पर चर्चा निज़ामुद्दीन चिश्ती का
नूरुल हसन नूर
ना'त-ओ-मनक़बत
किस दर्जा बुलंदी पे क़िस्मत का सितारा हैदामन मेरे हाथों में ख़्वाजा जी तुम्हारा है
फ़ना बुलंदशहरी
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ना'त-ओ-मनक़बत
सिद्क़-ओ-सफ़ा में यकता है दर्जा हुसैन काइस्लाम की बक़ा भी है सदक़ा हुसैन का
वजाहत हुसैन दाइम
सूफ़ी उद्धरण
इंकार इक़रार की एक हालत है, उसका एक दर्जा है, इंकार को इक़रार तक पहुंचाना, , बुद्धिमानी का काम है, उसी तरह कुफ़्र को इस्लाम तक लाना, ईमान वाले की ख़्वाहिश होना चाहिए।
वासिफ़ अली वासिफ़
सूफ़ी उद्धरण
सबसे ज़्यादा बद-क़िस्मत इन्सान वो है जो हद दर्जा ग़रीब हो और ख़ुदा पर यक़ीन न रखता हो।
सबसे ज़्यादा बद-क़िस्मत इन्सान वो है जो हद दर्जा ग़रीब हो और ख़ुदा पर यक़ीन न रखता हो।
वासिफ़ अली वासिफ़
बैत
जफ़ा पेशगाँ रा ब-देह सर ब-बाद
जफ़ा पेशगाँ रा ब-देह सर ब-बादसितम-बर-सितम पेशः 'अद्ल अस्त-ओ-दाद
सादी शीराज़ी
ना'त-ओ-मनक़बत
ब-ख़ूबी मेहर-ए-ताबाँ माह से ता-ब-माही होबड़ा क्या उस से रुत्बा हो कि महबूब-ए-इलाही हो
अज्ञात
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
ब-रौ ब-कार-ए-ख़ुद ऐ वाइ'ज़ ईं चे फ़रियाद अस्तमरा फ़ितादः दिल अज़ कफ़ तुरा चे उफ़्ताद अस्त