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शे'र
निकल कर ज़ुल्फ़ से पहुँचूँगा क्यूँकर मुसहफ़-ए-रुख़ परअकेला हूँ अँधेरी रात है और दूर मंज़िल है
अकबर वारसी मेरठी
ग़ज़ल
दिल तो था पहलू में लेकिन इम्तियाज़-ए-दिल न थाइज़्तिराब-ए-दिल ने बख़्शा इम्तियाज़-ए-दिल मुझे
वहशी वारसी
सूफ़ी कहावत
रू बरू बूदन बे अज़ पहलू बुवद
किसी व्यक्ति के सामने बैठना उसके पास बैठने से बेहतर है।
वाचिक परंपरा
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ना'त-ओ-मनक़बत
दिल में दर्द-ए-शह-ए-कौनैन की दौलत है बड़ीहूँ तो नादार मैं लेकिन मिरी क़ीमत है बड़ी
मुनव्वर बदायूँनी
सूफ़ी लेख
हज़रत महबूब-ए-इलाही ख़्वाजा निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी के मज़ार-ए-मुक़द्दस पर एक दर्द-मंद दिल की अ’र्ज़ी-अ’ल्लामा इक़बाल
सूफ़ीनामा आर्काइव
कलाम
दिल जिगर को आश्ना-ए-दर्द-ए-उल्फ़त कर दियाइक निगाह-ए-नाज़ ने सामान-ए-राहत कर दिया
अब्दुल हादी काविश
ना'त-ओ-मनक़बत
यही दर्द-ए-ज़िंदगी है इसी दर्द में मज़ा हैतेरा नाम जब लिया मेरा दिल तड़प उठा है