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रेख़्ता
सिद्क़ रहबर सब्र तोशा, दश्त मंज़िल दिल रफ़ीक़।
सिद्क़ रहबर सब्र तोशा, दश्त मंज़िल दिल रफ़ीक़।सत्त नगरी, धर्म राजा जोग मारग निरमला।।
अब्दुल क़ुद्दूस गंगोही
ग़ज़ल
दश्त-ए-पैमाई से है अपनी बयाबाँ नाज़ाँअपनी पा-पोश से है ख़ार-ए-मुग़ीलाँ नाज़ाँ
शाह नियाज़ अहमद बरेलवी
शे'र
दश्त-नवर्दी के दौरान 'मुज़फ़्फ़र' सर पर धूप रहीजब से कश्ती में बैठे हैं रोज़ घटाएँ आती हैं
मुज़फ़्फ़र वारसी
ग़ज़ल
शहीद-ए-इ’श्क़-ए-मौला-ए-क़तील-ए-हुब्ब-ए-रहमानेजनाब-ए-ख़्वाजः क़ुतुबुद्दीं इमाम-ए-दीन-ओ-ईमाने
वाहिद बख़्श स्याल
सूफ़ी कहावत
रू-ए ज़ेबा मरहम-ए-दिलहा-ए-ख़स्ता अस्त-ओ-कलीद-ए-दरहा-ए-बस्ता
एक ख़ूबसूरत चेहरा दुखी दिलों के लिए मरहम की तरह होता है, और बंद दरवाजों के लिए कुंजी
वाचिक परंपरा
ना'त-ओ-मनक़बत
गुल-ए-बुस्तान-ए-मा'शूक़ी मह-ए-ताबान-ए-महबूबीनिज़ामुद्दीन सुल्तान-उल-मशाइख़ जान-ए-महबूबी