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रेख़्ता
सिद्क़ रहबर सब्र तोशा, दश्त मंज़िल दिल रफ़ीक़।
सिद्क़ रहबर सब्र तोशा, दश्त मंज़िल दिल रफ़ीक़।सत्त नगरी, धर्म राजा जोग मारग निरमला।।
अब्दुल क़ुद्दूस गंगोही
शे'र
वो तजल्ली जिस ने दश्त-ए-आरज़ू चमका दियाकुछ तो मेरे दिल में है और कुछ कफ़-ए-मूसा में है
मुज़्तर ख़ैराबादी
शे'र
हर ज़र्रा उस की मंज़िल सहरा हो या हो गुलशनक्यूँ बे-निशाँ रहे वो तेरा जो बे-निशाँ है
हैरत शाह वारसी
शे'र
दश्त-नवर्दी के दौरान 'मुज़फ़्फ़र' सर पर धूप रहीजब से कश्ती में बैठे हैं रोज़ घटाएँ आती हैं
मुज़फ़्फ़र वारसी
ग़ज़ल
दश्त-ए-पैमाई से है अपनी बयाबाँ नाज़ाँअपनी पा-पोश से है ख़ार-ए-मुग़ीलाँ नाज़ाँ