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सबा ब-लुत्फ़ ब-गो आँ ग़ज़ाल-ए-रा'ना रा

हाफ़िज़

सबा ब-लुत्फ़ ब-गो आँ ग़ज़ाल-ए-रा'ना रा

हाफ़िज़

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    रोचक तथ्य

    अनुवाद: शंकर महेशवरी

    सबा ब-लुत्फ़ ब-गो आँ ग़ज़ाल-ए-रा'ना रा

    कि सर-ब-कोह-ओ-बयाबाँ तू दादःई मा रा

    अरी हवा, जा उस सुंदर हिरणी से कह दे मेरी बात

    अरी मृगी, तू ने सौपा है मुझको वन-पर्वत के हाथ

    ब-शुक्र आँ कि तुई बादशाह-ए-किशवर-ए-हुस्न

    ब-याद आर ग़रीबान-ए-दश्त-ओ-सहरा रा

    अपनी विरुदावलि की ख़ातिर रूप नगर के सम्राट

    इस मरूवन-वासी परदेसी की कुछ किया करो तुम याद

    शक्कर-फ़रोश कि उ'म्रश दराज़ बाद चरा

    तफ़क़्क़ुदे न-कुनद तूती-ए-शक्कर-ख़ा रा

    ईश कृपा से मिले दीर्घ जीवन मधु के सौदागर को

    जिसने ख़बर नहीं ली शुक की जो सच्चा मधू का गाहक

    ग़ुरूर-ए-हुस्न इजाज़त मगर न-दाद गुल

    कि पुरसिशे न-कुनी अं'दलीब-ए-शैदा रा

    रूप गर्व ऐसा जो शायद अनुमति देता नहीं तुम्हें

    इसीलिए कुसुम, लेते ख़बर बावरी बुलबुल की

    ब-हुस्न-ए-ख़ल्क़ तवाँ कर्द सयद-ए-अहल-ए-नज़र

    ब-दाम-ओ-दानः न-गीरंद मुर्ग़-ए-दाना रा

    शिष्ट आचरण करे भले ही भ्रमित, ज्ञानियों के मन को

    दाने के लालच में फँसते नहीं जाल में विहाग सुजान

    चू बा-हबीब नशीनी-ओ-बादः-पैमाई

    ब-याद आर हरीफ़ान-ए-बाद-पैमा रा

    जब तुम संग रहो प्रियतम के और करो मदिरा का पान

    अपने प्रतिद्धंद्धी पियक्कड़ों की तब किया करो तुम याद

    न-दानम अज़ चे सबब रंग-ए-आश्नाई नीस्त

    सही-क़दान-ए-सियह-चशम-ओ-माह-ओ-सीमा रा

    कजरारी आँखें हैं जिनकी, ललित देह, मुख चंद्र समान

    पता नहीं किस पारण उनमें सहृदयता का रंग नहीं

    जुज़ ईं क़द्र तवाँ गुफ़्त दर जमाल-ए-तू ऐ'ब

    कि ख़ाल-ए-महर-ओ-वफ़ा नीस्त रू-ए-ज़ेबा रा

    तेरे मुख की सुषमा ऐसी, कुछ भी कसर नहीं दिखती

    सिर्फ़ एक कोमल करुणा की वहाँ दिखती छाप कहीं

    दर आसमाँ चे अ'जब-गर ज़े गुफ़्तःए 'हाफ़िज़'

    समाअ-ए'-ज़ुहरः ब-रक़्स आवरद मसीहा रा

    आसमान मे जब शुक तारा गाए ‘हाफ़िज़’ की ग़ज़लें

    नाच उठे जिनको सुन ई’सा तो इसमें क्या विस्मय है

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