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शे'र
निकल कर ज़ुल्फ़ से पहुँचूँगा क्यूँकर मुसहफ़-ए-रुख़ परअकेला हूँ अँधेरी रात है और दूर मंज़िल है
अकबर वारसी मेरठी
ग़ज़ल
परवेज़ ने मिटाने में तक़्सीर तो न कीरह गई ज़बान-ए-तेशा पे ये दास्तान-ए-’इश्क़
ख़्वाजा रुक्नुद्दीन इश्क़
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ग़ज़ल
ग़ाफ़िलों को क्या सुनाऊँ दास्तान-ए-इश्क़-ए-यारसुनने वाले मिलते हैं दर्द-आश्ना मिलता नहीं
अकबर इलाहाबादी
ना'त-ओ-मनक़बत
ख़ून से लिखी गई है दास्तान-ए-कर्बलाबन गया है मर्सिया ज़िक्र-ओ-बयान-ए-कर्बला
शाह आयतुल्लाह क़ादरी
ग़ज़ल
शब-ए-फ़ुर्क़त कहें हम दास्तान-ए-दर्द-ओ-ग़म किस सेन कोई हम-नवा अपना न कोई राज़-दाँ अपना
अफ़सर नारवी
ग़ज़ल
शहीद-ए-इ’श्क़-ए-मौला-ए-क़तील-ए-हुब्ब-ए-रहमानेजनाब-ए-ख़्वाजः क़ुतुबुद्दीं इमाम-ए-दीन-ओ-ईमाने
वाहिद बख़्श स्याल
सूफ़ी कहावत
रू-ए ज़ेबा मरहम-ए-दिलहा-ए-ख़स्ता अस्त-ओ-कलीद-ए-दरहा-ए-बस्ता
एक ख़ूबसूरत चेहरा दुखी दिलों के लिए मरहम की तरह होता है, और बंद दरवाजों के लिए कुंजी
वाचिक परंपरा
ना'त-ओ-मनक़बत
गुल-ए-बुस्तान-ए-मा'शूक़ी मह-ए-ताबान-ए-महबूबीनिज़ामुद्दीन सुल्तान-उल-मशाइख़ जान-ए-महबूबी