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सूफ़ी लेख
चरणदासी सम्प्रदाय का अज्ञात हिन्दी साहित्य - मुनि कान्तिसागर - Ank-1, 1956
अस्त-बिस्त कहुं बेग ह्वै, दीजो संत सुधार।।63।।बाई खुशालां
भारतीय साहित्य पत्रिका
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पद
दर्शनानंद के पद - मैं तो थारे दामन लगी जी गोपाल
मैं तो थारे दामन लगी जी गोपालकिरपा कीजो दर्शन दीजो सुध लीजो तत्काल
मीराबाई
कृष्ण भक्ति सूफ़ी कलाम
हमरे पिया को दुख न दीजो निस दिन लीजो बलय्यातू है वाही की दुहिय्या
मुज़्तर ख़ैराबादी
पद
सद्गुरू-महिमा के पद - गुंथ लावो ऐ सुरता सेवरो म्हारा साधो राँ जोग
गादी तकियां रा दीजो बैठना ज्यांरे चमर दुलीजेहँस कर हाली नार ज्यांरे पग नेवर बाजे
मीराबाई
ग़ज़ल
फ़ुर्क़त में उस अबरू की गला काटूँगा अपनाम्याँ दीजो उसे दम मिरी तलवार कहाँ है
अ’ब्दुल रहमान एहसान देहलवी
ना'त-ओ-मनक़बत
'आसी की तेरे दर पे बस इतनी गुज़ारिश हैकर दीजो मुशर्रफ़ मुझ को दीदार-ए-मोहम्मद से
आ’सी गयावी
पद
सद्गुरू-महिमा के पद - सुरता सवागण नार कुँवारी क्यूँ रही
भाभल दीजो डाइजो रतन धन चार पदारथ प्रेम रागेणो म्हारे ज्ञान रो पैराव हार हर नाम रा
मीराबाई
पद
ब्रजभाव के पद - प्रीत निभाना रे काना प्रीत निभाना ए-जी म्हाँने बिसर नहि जाना
जब से टेर सुनी बंशी की भूल गई अन खानाके तो म्हाँने दरसन दीजो नीतर तजूँगी प्राण
मीराबाई
काफी
उल्टी गंग बहाइओ रे साधो तब हर दरसन पाए
उल्टी गंग बहाइओ रे साधो तब हर दरसन पाएप्रेम दी पूनी हाथ में लीजो गुझ्झ मरोड़ी पड़ने ना दीजो
बुल्ले शाह
क़िता'
लिल्लाह शाह-ए-उमम हो निगाह-ए-करम सुन लो मेरी सदावक़्त आख़िर है सूरत दिखा दो मुझे दीजो बिगड़ी बना