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ग़ज़ल
दुज़-दीदा निगाहों में है क्या जादू ख़ुदा जानेकिसी के दिल पे क्या गुज़री निगाहों की बला जाने
बेख़ुद सुहरावरदी
राग आधारित पद
कल्याण-मत- गुइयाँ वर जोरी कुच गहे मुख मीड़े फिर फिर आवत मोरी छुइया।
गुइयाँ वर जोरी कुच गहे मुख मीड़े फिर फिर आवत मोरी छइया।काजम अपनी ओर निवारो बरबस झगरा ठइयां।।
क़ाज़िम वा क़ायम
कलाम
कामिल शत्तारी
ना'त-ओ-मनक़बत
ज़िया दीदा-ए-हक़बीं है रूख़्सारा मोहम्मद काकि है अल्लाह का दीदार नज़्ज़ारा मोहम्मद का
अज्ञात
ग़ज़ल
ख़्वाजा अज़ीज़ुल हसन मज्ज़ूब
ग़ज़ल
जिस को देखा यार तेरा आ'शिक़-ए-ना-दीदा हैमुझ पे क्या मौक़ूफ़ इक आ'लम तेरा गिरवीदा है
बेदम शाह वारसी
सूफ़ी कहावत
हर कुजा तू बा मनी, मन ख़ुशदिलम, वर बूवद दर क़ा'र चाही मंज़िलम।
मुझे खुशी है जहाँ तू मेरे साथ है, चाहे मुझे कुएँ की गहराई में रहना पड़े।