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शे'र
वो चाँद सा मुँह सुर्ख़ दुपट्टा में है रख़्शाँया मेहर कहूँ जल्वा-नुमा ज़ेर-ए-शफ़क़ है
मीर मोहम्मद बेदार
ग़ज़ल
वो सो रहे हैं मुँह पे दुपट्टा जो डाल केकिन हसरतों से तकते हैं अरमाँ विसाल के
ख़्वाजा अज़ीज़ुल हसन मज्ज़ूब
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ग़ज़ल
वो चाँद सा मुँह सुर्ख़ दुपट्टा में है रख़्शाँया मेहर कहूँ जल्व:-नुमा ज़ेर-ए-शफ़क़ है
मीर मोहम्मद बेदार
ना'त-ओ-मनक़बत
बे-रिदा होने को थी उम्मत शह-ए-कौनैन कीहज़रत-ए-ज़ैनब ने पेश अपना दुपट्टा कर दिया
शाहिद रज़ा शाहजहांपुरी
ग़ज़ल
सर पे है धानी दुपट्टा दिल-पसंद ऐ हूर-वशला'ल-ए-लब पर है तबस्सुम फिर न क्यूँ हो दिल का ख़ूँ
मरदान सफ़ी
सूफ़ी लेख
When Acharya Ramchandra Shukla met Surdas ji (भक्त सूरदास जी से आचार्य शुक्ल की भेंट) - डॉ. विश्वनाथ मिश्र
शुक्ल– आपके इन शब्दों के साथ हमारा यह वाद-प्रतिवाद एक प्रकार से समाप्त हो जाता है।
सम्मेलन पत्रिका
सूफ़ी लेख
बहादुर शाह और फूल वालों की सैर
बादशाह ने फ़रमाया वाह जी वाह ख़ाली झूला कैसा। कढ़ाई चढ़ाओ, झूलते जाओ और खाते जाओ