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दकनी सूफ़ी काव्य
दो जग मने मुँज कूँ अहे करतार मआज़
दो जग मने मुँज कूँ अहे करतार मआज़बन्दा हूँ उसी का वही ठार मआज़
कुली कुतुब शाह
रूबाई
अब्र शाह वरसी
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कुंडलिया
सन्त शब्द न्यारे नहीं, राखो हृदय मांहि।।
आत्म सुमरण सुखलिया, दूजा दो जग जाहि।।सन्त शब्द न्यारे नहीं, राखो हृदय मांहि।।
स्वामी आत्माराम जी
दोहरा
ये जग वो जग छोड़कर हौं निज जोगन हूँ
ये जग वो जग छोड़कर हौं निज जोगन हूँबिन पिय भेक्या ऐ सखी एकौ जग नहिं लूँ
अब्दुल क़ुद्दूस गंगोही
गूजरी सूफ़ी काव्य
देखो सखी जग है पिया जग में पिया दिस्ता है ख़ूब
देखो सखी जग है पिया जग में पिया दिस्ता है ख़ूबएक तुख़्म जूँ गुलज़ार में हर फूल में हँसता है ख़ूब
पीर सय्यद मोहम्मद अक़दस
सूफ़ी लेख
उ’र्फ़ी हिन्दी ज़बान में - मक़्बूल हुसैन अहमदपुरी
हनूज़ रंग-ए-अदब बर रुख़-ए-सुख़न बाक़ीस्तइस अन्याय से भर गए दो जग तुझसे उलहना कौन करे
ज़माना
पद
जेठ- जेठ जग अति धूप गाढ़ो तेज तामस घाम रे ।
जेठ जग अति धूप गाढ़ो तेज तामस घाम रे ।तपत है त्रयताप सों तन, मूढ़ बिनु हरि नाम रे ।।
तुलसीदास (ब्रजवासी)
दोहा
रहिमन जग जीवन बड़े काहु न देखे नैन
रहिमन जग जीवन बड़े काहु न देखे नैनजाय दशानन अछत ही कपि लागे गथ लेन
रहीम
सलोक
फ़रीदा विछोड़ा बुर्यारु जिति विछड़े जग दुबला
फ़रीदा विछोड़ा बुर्यारु जिति विछड़े जग दुबलाते माहनु हैस्यार विछुड़ि के मोटे थीवन
बाबा फ़रीद
गूजरी सूफ़ी काव्य
तू रूप देख जग मोह्या, चंदर तारायन भान।
तू रूप देख जग मोह्या, चंदर तारायन भान।इन्हीं रूप तू पहन होवुं, को लहो न होवे आन।।
सय्यद मोहम्मद जौनपुरी
ना'त-ओ-मनक़बत
ग़रीबों का सहारा या मोहम्मद मुस्तफ़ा तुम होख़ुदा के दिल-रुबा हो बे-कसों का आसरा तुम हो