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शे'र
निकल कर ज़ुल्फ़ से पहुँचूँगा क्यूँकर मुसहफ़-ए-रुख़ परअकेला हूँ अँधेरी रात है और दूर मंज़िल है
अकबर वारसी मेरठी
शे'र
हज़ार रंग-ए-ज़माना बदले हज़ार दौर-ए-नशात आएजो बुझ चुका है हवा-ए-ग़म से चराग़ फिर वो जला नहीं है
अफ़क़र मोहानी
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शे'र
बाग़ से दौर-ए-ख़िज़ाँ सर जो टपकता निकलाक़ल्ब-ए-बुलबुल ने ये जाना मेरा काँटा निकला
मुज़्तर ख़ैराबादी
शे'र
बाग़ से दौर-ए-ख़िज़ाँ सर जो टपकता निकलाक़ल्ब-ए-बुलबुल ने ये जाना मेरा काँटा निकला
मुज़्तर ख़ैराबादी
ना'त-ओ-मनक़बत
ख़्वाजा शायान हसन
ग़ज़ल
रहा दौर-ए-जहाँ क़ायम कभी हो जाएगा मिलनाहमारे दम में दम बाक़ी है और नाम-ए-ख़ुदा तुम हो
राक़िम देहलवी
कलाम
ये फ़ज़ा ये चाँदनी रातें ये दौर-ए-जाम-ओ-मयमस्तियों में ग़र्क़ हो जाने का मौसम आगया
इक़बाल सफ़ीपुरी
ना'त-ओ-मनक़बत
सलातीन-ए-जहाँ के दिल में अरमान-ए-ग़ुलामी है'अजब शाहाना दरबार-ए-शहंशाह-ए-गिरामी है
शकील बदायूँनी
सूफ़ी उद्धरण
इ’ल्म से पहले का ज़माना जिहालत का दौर कहलाता है।
इ’ल्म से पहले का ज़माना जिहालत का दौर कहलाता है।