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कवित्त
चातक उशीर वीर बकसी समीर धीर
चातक उशीर वीर बकसी समीर धीरपुरवाई महाबीर केकिन को मान है।
खान सुलतान
कविता
जब लगि हिय में धर सको, तब लगि धरो जु धीर।
जब लगि हिय में धर सको, तब लगि धरो जु धीर।'मीरन' अब कैसी बनी, अधिक पिरानो पीर।।
मीरन
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साखी
बिरह का अंग - अंक भरी भरि भेंटिये मन नहिं बाँधै धीर
अंक भरी भरि भेंटिये मन नहिं बाँधै धीरकह 'कबीर' ते क्या मिले जब लगि दोय सरीर
कबीर
महाकाव्य
।। रसप्रबोध ।।
धीर प्रधान लहै कहौ नायक धीर उदात।धीर प्रसांत सो जानु जेहि सार सांति की बात।।583।।
रसलीन
पद
गुन अजब नामः - भया सुनि धीर मन मोरा सु जीवन जगत मैं थोरा
भया सुनि धीर मन मोरा सु जीवन जगत मैं थोरासखी सुनि अंति जौ मरिये तौ पिय कौं त्यागि क्या करिये
वाजिद जी दादूपंथी
सूफ़ी लेख
बिहारी-सतसई-संबंधी साहित्य (बाबू जगन्नाथदास रत्नाकर, बी. ए., काशी)
छप्पय सुमुख, सुखद, ससि-धरन, धीर, हेरंब, अबं-सुत।
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
दकनी सूफ़ी काव्य
मसनवी गुलशने इश्क़
रहे ताज़ा सब ........... ........ ...... ....धीर तेभिगाने लग्या नैन के नीर ते
नुसरती
सूफ़ी लेख
कवि वृन्द के वंशजों की हिन्दी सेवा- मुनि कान्तिसागर - Ank-3, 1956
राजसिंघ महाराज के वीरसिंघ सुत वीर ताके सुत थे ऐमसिंघ सूरजसिंघ रस धीर।।
भारतीय साहित्य पत्रिका
कुंडलिया
चारों दिसि सूझै नही, यह नदधार अपार।
बरनै दीनदयाल, पथी बहु पौन प्रचारो।पाहि पाहि रघुबीर, नाम धरि धीर उचारो।।
दीनदयाल गिरि
दकनी सूफ़ी काव्य
यूसुफ़ जुलेखा
जो उतर्या था ओ काफ़िला चारों धीरतो ढूँडने लगे जा बजो फिर फिर