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शे'र
मैं समझूँगा कि मेरे दाग़-ए-इस्याँ धुल गए सारेअगर आँसू तिरी चश्म-ए-तग़ाफ़ुल से निकल आया
मुज़्तर ख़ैराबादी
सूफ़ी लेख
हाफ़िज़ की कविता- शाल़ग्राम श्रीवास्तव
कौन भरोसा देह का, छाड़हु जतन उपाय।कागद की जस पूतरी, पानि परे धुल जाय।।
सरस्वती पत्रिका
सूफ़ी लेख
हाफ़िज़ की कविता - शालिग्राम श्रीवास्तव
कागद की जस पूतरी, पानि परे धुल जाय।।(च) संसार की असारता पर हाफ़िज़ का कहना है—
सरस्वती पत्रिका
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नज़्म
मौज़ू-ए-सुख़न
गुल हुई जाती है अफ़्सुर्दा सुलगती हुई शामधुल के निकलेगी अभी चश्मा-ए-महताब से रात
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
कलाम
गुनाहान-ए-सग़ीरा साफ़ धुल जाते हैं ज़ाएर केकबीरा के लिए भी कुछ है इस्तिख़फ़ाफ़ का'बा में
हाजी वारिस अली शाह
ना'त-ओ-मनक़बत
आसमाँ से हो रही थी तेज़ बारिश नूर कीधुल गई सारी सियाही ख़ुद शब-ए-दैजूर की
महबूब गौहर इस्लामपुरी
ग़ज़ल
मैं समझूँगा कि मेरे दाग़-ए-इस्याँ धुल गए सारेअगर आँसू तिरी चश्म-ए-तग़ाफ़ुल से निकल आया
मुज़्तर ख़ैराबादी
सूफ़ी लेख
शैख़ हुसामुद्दीन मानिकपूरी
क़ौलः रफ़ीक़ुल-आ’रिफ़ीन में आप फ़रमाते हैं कि मुरीदों को अपने मशाएख़ से वही निसबत है जैसे
उमैर हुसामी
सूफ़ी लेख
सन्तरण कृत गुरु नानक विजय - जयभगवान गोयल
मध्ययुगीन निर्गुण भक्त कवियों (सन्तों) की भाँति सन्तरेण ने भी अपनी साधना में नाम-स्मरण को सर्वाधिक