आपकी खोज से संबंधित
परिणाम "नभ"
अत्यधिक संबंधित परिणाम "नभ"
छंद
शिव विष्णु ईश बहु रूप तुई नभ तारा चारु सुधाकर है।
शिव विष्णु ईश बहु रूप तुई नभ तारा चारु सुधाकर है।अम्बा धारानल शक्ति स्वधा स्वाहा जल पौन दिवाकर है।।
सीतल
कवित्त
धूरि चढै नभ पौन प्रसंग तें कीच भई जल संगति पाई
धूरि चढै नभ पौन प्रसंग तें कीच भई जल संगति पाई।फूल मिलै नृप पै पहुंचै कृमि-कीटनि संग अनेक बिथाई।।
दास
शब्दकोश से सम्बंधित परिणाम
अन्य परिणाम "नभ"
सूफ़ी लेख
संत साहित्य - श्री परशुराम चतुर्वेदी
आप ब्रह्म जिव माया।।5।।अंडाकार सुन्न नभ आपै,
हिंदुस्तानी पत्रिका
सूफ़ी लेख
कवि वृन्द के वंशजों की हिन्दी सेवा- मुनि कान्तिसागर - Ank-3, 1956
दोहा अव्द बेद 4 नभ, निधि 9 अवनि 1 अगहन मास उचार
भारतीय साहित्य पत्रिका
कवित्त
अवधपुरी घुमडि घटा रही छाय ।
अवधपुरी घुमडि घटा रही छाय ।चलत सुमन्द पवन पुरवाई नभ घन घोर मचाय ।।
प्रताप कुंवरी बाई
सलोक
माया- माया मूहु कारो, केरे मोहियो माणुहुनि खे।
सामी रहे को सूर्मो, नभ ज्यॉ न्यारो।जागी जग्रु सारो, लै दिठो जहिं लख्य मे।।
सामी
कविता
उज्जल पख की रैन चैन उज्जल रस दैनी।
दहन मानपुर भये मिलन कों मन हुलसावत।छावत छपा अमन्द चन्द ज्यों ज्यों नभ आवत।।
नागरीदास और बनीठनीजी
सलोक
माया- माया मूहु कारो, मोहे कयो माणुहुनि जो।
सामी रहे को सूर्मो, नभ ज्यॉ न्यारो।जागी जगु सारो, लै दिठो जहिं लख्य मे।।
सामी
सूफ़ी लेख
आज रंग है !
प्रेम लसित पिचुकारी छूटत तारी दै दै बोलैतत्त बीर उड़त नभ छायो ज्ञानहीन मति तौलै
सुमन मिश्रा
साखी
अंतर बाहिर एकरस, जो चेतन भर पूर।
अंतर बाहिर एकरस, जो चेतन भर पूर।बिभु नभ सम सो ब्रह्म है, नहिं नेरे नहिं दूर।।
साधु निश्चलदास
महाकाव्य
।। रसप्रबोध ।।
जिहिं बिलाप महँ तिनि सुनी यह धुनि नभ ते आपु।।981।।द्वापर में लब होइगो आनि कृष्ण अवतार।
रसलीन
सूफ़ी लेख
उमर खैयाम की रुबाइयाँ (समीक्षा)- श्री रघुवंशलाल गुप्त आइ. सी. एस.
नभ के प्याले में दिनकर की माणिक-सुधा ढालते देख कलियाँ अधरपुटों को खोले ललक रही हैं उसकी ओर।