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कलाम
'अजब अंदाज़ तुझ को नर्गिस-ए-मस्ताना आता हैकि हर होशियार बनने को यहाँ दीवाना आता है
बाक़ीर शाहजहांपुरी
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ग़ज़ल
है बरगश्ता किसी की नर्गिस-ए-मस्ताना बरसों सेलिए फिरता हूँ मैं अपना तही-पैमाना बरसों से
ख़्वाजा अज़ीज़ुल हसन मज्ज़ूब
कलाम
यहाँ भी कुछ निगाहें तिश्ना-ए-दीदार हैं साक़ीइधर भी एक दौर-ए-नर्गिस-ए-मस्ताना हो जाए
माहिरुल क़ादरी
बैत
किसी की नर्गिस-ए-मख़मूर कुछ कह दे इशारों में
किसी की नर्गिस-ए-मख़मूर कुछ कह दे इशारों मेंमज़ा है रात-दिन चलती रहे परहेज़गारों में
दाग़ देहलवी
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
चश्म-ए-नर्गिस निगरानस्त ब-गुलज़ार बियाफ़र्श-ए-राह-ए-तू गुल अन्द ऐ गुल-ए-बे-ए-ख़ार बिया
शाह अकबर दानापूरी
शे'र
चश्म नर्गिस बन गई है इश्तियाक़-ए-दीद मेंकौन कहता है कि गुलशन में तिरा चर्चा नहीं