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शे'र
निकल कर ज़ुल्फ़ से पहुँचूँगा क्यूँकर मुसहफ़-ए-रुख़ परअकेला हूँ अँधेरी रात है और दूर मंज़िल है
अकबर वारसी मेरठी
ना'त-ओ-मनक़बत
ख़ुदा के नाम से रौशन है नाम-ए-’अब्दुल्लाहकलाम-ए-मुस्तफ़वी है कलाम-ए-’अब्दुल्लाह
मयकश अकबराबादी
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ना'त-ओ-मनक़बत
रौनक़-ए-शान-ए-बे-निशाँ नाम-ओ-निशाँ में भी आजे़ब-ए-फ़िज़ा-ए-ला-मकाँ अब तो मकाँ में भी आ
मौलाना अ’ब्दुल क़दीर हसरत
सूफ़ी लेख
हज़रत गेसू दराज़ का मस्लक-ए-इ’श्क़-ओ-मोहब्बत - तय्यब अंसारी
हज़रत अबू-बकर सिद्दीक़ रज़ी-अल्लाहु अ’न्हु ने फ़रमाया था:परवाने को चराग़ है, बुलबुल को फूल बस
मुनादी
ना'त-ओ-मनक़बत
इश्तियाक़ आलम शहबाज़ी
ना'त-ओ-मनक़बत
जो नाम-ए-ग़ौस-ए-आ’ज़म दिल से भी दोहराने लगते हैंमक़ाम-ए-सिर्र-ए-इल-लल्लाह को वो पाने लगते हैं
रियाज़ अहमद
ना'त-ओ-मनक़बत
ऐ बे-नियाज़-ए-मालिक मालिक है नाम तेरामुझ को है नाज़ तुझ पर मैं हूँ ग़ुलाम तेरा
शाह अकबर दानापूरी
शे'र
महकने को गुल-ए-दाग़-ए-मोहब्बत दिल में है अपनेखटकने को है ख़ार-ए-हसरत-ए-दीदार आँखों में
कैफ़ी हैदराबादी
ना'त-ओ-मनक़बत
पैकर-ए-ख़लक़-ओ-मोहब्बत हैं शह-ए-तेग़-ए-अ’लीसाहब-ए-किरदार-ओ-सीरत हैं शह-ए-तेग़-ए-अ’ली