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सदा ना रसत बाज़ारीं विकसी सदा ना रौनक शहरां
सदा ना रसत बाज़ारीं विकसी सदा ना रौनक शहरांसदा ना मौज जवानी वाली सदा ना नदीए लहरां
मियां मोहम्मद बख़्श
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सदा ना रूप गुलाबां उते सदा ना बाग़ बहारां
सदा ना रूप गुलाबां उते सदा ना बाग़ बहारांसदा ना भज भजि फेरे करसन तोते भौर हज़ारां
मियां मोहम्मद बख़्श
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सदा ना लाट चिराग़ां वाली सदा ना सोज़ पतंगां
सदा ना लाट चिराग़ां वाली सदा ना सोज़ पतंगांसदा उडारां नाळ कतारां रहसन कद कुलंगां
मियां मोहम्मद बख़्श
ग़ज़ल
शम्स साबरी
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ना ख़ुदा मसीते लभदा ना ख़ुदा विच का'बे
ना ख़ुदा मसीते लभदा ना ख़ुदा विच का'बेना ख़ुदा क़ुरआन किताबाँ ना ख़ुदा नमाज़े
बुल्ले शाह
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तुका बड़ो मैं ना मनूँ जिस पास बहु दाम
'तुका' बड़ो मैं ना मनूँ जिस पास बहु दामबलिहारी उस मुख की जिस्ते निकसे राम
तुकाराम
सूफ़ी कहानी
ग़ुलाम जो मस्जिद से बाहर ना आता था - दफ़्तर-ए-सेउम
किसी अमीर का ग़ुलाम सुनक़ुर नाम गुज़रा है। एक रोज़ पिछली रात को अमीर ने सुनक़ुर
रूमी
सूफ़ी कहानी
कनआ’न का नूह के बुलाने को ना मानना - दफ़्तर-ए-सेउम
जब तक कि रूह तेरे लिए ख़ुद ना बोल उठे ज़बान ना हिला, नूह की कश्ती
रूमी
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परीए ! ख़ौफ़ ख़ुदा तों डरिए करीए मान ना मासा
परीए ! ख़ौफ़ ख़ुदा तों डरिए करीए मान ना मासाजोबन हुसन ना तोड़ निबाहू की इस दा भरवासा
मियां मोहम्मद बख़्श
दोहा
बड़े बड़ाई ना करैं बड़ो न बोलैं बोल
बड़े बड़ाई ना करैं बड़ो न बोलैं बोल'रहिमन' हीरा कब कहै लाख टका मो मोल
रहीम
फ़ारसी कलाम
तर्क-ए-चश्म-ए-मख़्मूरश मस्त-ए-ना-तवानीहास्तफ़ित्न: बा निगाह-ए-ऊ गर्म-ए-हम अ'नानीहास्त