कनआ’न का नूह के बुलाने को ना मानना - दफ़्तर-ए-सेउम
रोचक तथ्य
अनुवादः मिर्ज़ा निज़ाम शाह लबीब
जब तक कि रूह तेरे लिए ख़ुद ना बोल उठे ज़बान ना हिला, नूह की कश्ती में बैठ और अपना तैरना छोड़ जैसे कहावत है कि कनआ’न जो बड़ा तैराक था कहने लगा कि नूह हमारा दुश्मन है हमें उस की कश्ती नहीं चाहिए। बहुतेरा नूह ने कहा कि आ हमारे साथ कश्ती में बैठ ताकि तूफ़ान में ग़र्क़ होने से बच सके। मगर कनआ’न ने जवाब दिया कि मैं तैरना जानता हूँ। मेरी शम्अ’ मेरे साथ है, तेरी शम्अ’ की क्या पर्वा। नूह ने कहा हाए ऐसा ना कर, ये तूफ़ान एक बला है। सारी तैराकी रह जाएगी। हाथ पैर शल हो जाएंगें। हवा के झक्कड़ सब शम्ओं’ को बुझा देंगे। इस में सिवा हक़ की शम्अ’ के और कोई रौशन ना रह सकेगी।
कनआ’न ने कहा कि मैं ऊंचे पहाड़ पर चढ़ जाउंगा और पहाड़ हर तुग़्यानी से महफ़ूज़ है। नूह ने कहा ख़बरदार ऐसा ना करना। वो पहाड़ भी इस मौक़ा’ पर घास की एक पत्ती के बराबर है और ख़ुदा सिवा अपने दोस्तों के और किसी को नजात ना देगा। कनआ’न ने कहा मैंने आज तक तेरी नसीहत कब सुनी थी कि तू अब मेरी नसीहत मानने की उम्मीद करता है। मुझे हरगिज़ तेरी बात पसंद नहीं आई। मैं दोनों जहान में तुझसे अलग हूँ। नूह ने कहा कि ऐ फ़र्ज़ंद इस वक़्त ज़िद्दी मत बन। ये मौक़ा’ अड़ने का नहीं क्योंकि ख़ुदा का ना कोई रिश्तेदार है ना कोई बराबरी वाला। तूने जो कुछ किया सो किया मगर ये वक़्त नाज़ुक है।इस बारगाह मैं किस पर कौन नाज़ कर सकता है।
अल-ग़र्ज़ वो इस तरह नसीहतें करता और उसे बुलाता रहा और सख़्त जवाब सुनता रहा। वह बाप नसीहत से बाज़ आया ना उस बद-बख़्त ने कोई बात मानी । ये दोनों इन ही बातों में थे कि एक तेज़ मौज आई और सूखे पत्ते की तरह कनआ’न को बहा कर रेज़ा रेज़ा कर दिया। नूह ने बारगाह-ए-एज़दी में अ’र्ज़ की ऐ रहीम –ओ-करीम बादशाह मेरा गधा मर गया और तेरी मौज मेरी कमली को बहा ले गई। तूने मुझसे बारहा वा’दा किया कि मेरे लोग तूफ़ान से बचे रहेंगे इर्शाद-ए-ख़ुदावंदी हुआ कि वो तेरे लोगों में से ना था। तुझे ख़ुद सफ़ेद और नीले में तमीज़ नहीं रही। जब तेरे दाँत में कीड़ा लग जाये तो उस दाँत से हाथ धो और उस को उखड़वा दे । अगरचे वो दाँत तेरा ही था मगर तू उस से बे-ज़ार हो जाता है कि तेरा बाक़ी जिस्म उस दाँत से दर्द-मंद हो जाएगा। नूह ने अ’र्ज़ की कि मैं तेरी ज़ात के सिवा ग़ैर से बेज़ार हूँ और कौन ग़ैर है जो तुझसे ना हारा हो। तू ख़ुद जानता है कि तेरे साथ मेरा क्या हाल है।
फिर इरशाद हुआ कि ऐ नूह अगर तू सबको दुबारा पैदा करना चाहे तो अभी ज़मीन से उठा दूंगा । एक कनआ’न के लिए मैं तेरा दिल नहीं तोडूँगा। लेकिन उस के अहवाल से तुझे आगाह करता हूँ। हज़रत-ए-नूह ने अ’र्ज़ की कि नहीं नहीं अगर तुझे मंज़ूर हो तो मुझे भी ग़र्क़ कर दे मैं राज़ी हूँ। अगर तू मुझे मारेगा तो वो मौत ही मेरी जान हो जाएगी मैं तेरे सिवा किसी को नहीं देखूँगा
ख़ुदा की सनअ’त का दिल-दादा साहिब-ए-इ’ज़्ज़त होता है मगर जो बनी हुई चीज़ पर फ़रेफ़्ता हो वो कुफ़्र की ज़िल्लत में मुब्तला हो जाता है।
- पुस्तक : हिकायात-ए-रूमी हिस्सा-1 (पृष्ठ 116)
- प्रकाशन : अंजुमन तरक़्क़ी उर्दू (हिन्द) (1945)
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