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शे'र
निकल कर ज़ुल्फ़ से पहुँचूँगा क्यूँकर मुसहफ़-ए-रुख़ परअकेला हूँ अँधेरी रात है और दूर मंज़िल है
अकबर वारसी मेरठी
सूफ़ी लेख
औघट शाह वारसी और उनका कलाम
गुफ़्ता चे सेह्र-ए-सामरी गुफ़्तम निगाह-ए-नाज़-ए- तूगुफ़्ता कि वारस्त: कुनद गुफ़्तम कि ईं जादू-ए-तू
सुमन मिश्रा
फ़ारसी कलाम
रौशन अज़ अक्स-ए-जमालश आ'लम-ए-इम्कान-ए-मायक निगाह-ए-नाज़-ए-जानाँ क़ीमत-ए-ईमान-ए-मा
बहलोल दाना
कलाम
दिल जिगर को आश्ना-ए-दर्द-ए-उल्फ़त कर दियाइक निगाह-ए-नाज़ ने सामान-ए-राहत कर दिया
अब्दुल हादी काविश
फ़ारसी कलाम
गुफ़्ता चे सेह्र-ए-सामरी गुफ़्तम निगाह-ए-नाज़-ए- तूगुफ़्ता कि वारस्त: कुनद गुफ़्तम कि ईं जादू-ए-तू
औघट शाह वारसी
ग़ज़ल
दिखाती है कभी भाला कभी बर्छी लगाती हैनिगाह-ए-नाज़-ए-जानाँ हम को क्या क्या आज़माती है
आसी गाज़ीपुरी
कलाम
निगाह-ए-नाज़ ख़ाल-ए-रुख़ से मैदान-ए-मोहब्बत मेंसितम के तीर पड़ते हैं ग़ज़ब गोली बरसती है
अमीर मीनाई
ग़ज़ल
निगाह-ए-नाज़-ए-जानाँ बे-नियाज़-ए-दिल सही 'वासिफ़'मगर हुब्ब-ए-तमन्ना रंग-ए-महफ़िल होता जाता है