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कलाम
अपनी निगाह-ए-शौक़ को रोका करेंगे हमवो ख़ुद करें निगाह तो फिर क्या करेंगे हम
मौलाना अ’ब्दुल क़दीर हसरत
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ना'त-ओ-मनक़बत
जल्वा निगाह-ए-शौक़ में क्यूँ-कर समा सकेअबरू हिलाल बदर हैं रुख़्सार-ए-मुस्तफ़ा
अख़तर ख़ैराबादी
ना'त-ओ-मनक़बत
हर एक ज़र्रः दिल में उन का अक्स-ए-जमीलनिगाह-ए-शौक़ को फिर भी है आरज़ू-ए-रसूल
सत्तार वारसी
ग़ज़ल
बिखर जाएँगे जल्वे तुम नक़ाब-ए-रुख़ न सरकाओनिगाह-ए-शौक़ की तंगी-ए-दामाँ कौन देखेगा
काज़िम हुसैन राज़
ना'त-ओ-मनक़बत
बहुत दिनों से है ज़ौक़-ए-सफ़र ग़रीब-नवाज़निगाह-ए-शौक़ में है रहगुज़र ग़रीब-नवाज़