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जब तक निगाह-ए-शौक़ रही इख़्तियार में

सफ़ी औरंगाबादी

जब तक निगाह-ए-शौक़ रही इख़्तियार में

सफ़ी औरंगाबादी

MORE BYसफ़ी औरंगाबादी

    जब तक निगाह-ए-शौक़ रही इख़्तियार में

    वो रात दिन रहे हैं मिरे इंतिज़ार में

    चालें नई नई सी हैं रफ़्तार-ए-यार में

    पड़ जाएगा ख़लल रविश-ए-रोज़गार में

    रहना है चार दिन चमन-ए-रोज़गार में

    दो दिन ख़िज़ाँ में जाएँगे दो दिन बहार में

    जो एक रँग पर हो ख़िज़ाँ-ओ-बहार में

    वो फूल ही नहीं चमन-ए-रोज़गार में

    सारी बहार उस से है फ़स्ल-ए-बहार में

    बस एक फूल है चमन-ए-रोज़गार में

    धोका हुआ कि हँसते हुए रहे हैं आप

    बिजली चमक गई जो शब-ए-इंतिज़ार में

    दुनिया को लोग छोड़ के उ'क़्बा पे क्यूँ मरें

    जो नक़्द में मज़ा है कहाँ है उधार में

    हैं वक़्त के ग़ुलाम ज़मीं और आसमाँ

    ये क्या शरीक होंगे मिरे कार-ओ-बार में

    मजबूर-ए-बंदगी में कहाँ शान-ए-बंदगी

    रहने दो कुछ कुछ तो मिरे इख़्तियार में

    पीरी में होगा ग़फ़लत-ए-याद-ए-ख़ुदा का दर्द

    उभरेगी ये भी चोट लहू के उतार में

    इक ताज़ा वारदात है इक ताज़ा दम के साथ

    मेरे इरादे नहीं सकते शुमार में

    कोई पूछे ख़ैर नकीरैन ही सही

    पर्दे की बात जा के कहूँगा मज़ार में

    आओ तो इस तरह मिरे मेहमाँ रहा करो

    उम्मीद जिस तरह दिल-ए-उम्मीद-वार में

    मैं जब्र-ओ-इख़्तियार की उलझन में पड़ गया

    क्या कह गए वो इक निगह-ए-शर्मसार में

    अपनी अगर नहीं है तो अपनों की फ़िक्र है

    हर आदमी है एक इक ख़लफ़शार में

    नाला ख़िलाफ़-ए-वा'दा किया हाय क्या किया

    वो सुन चुके तो फ़र्क़ पड़ा ए'तिबार में

    कहते हैं लोग मौत से बद-तर है इंतिज़ार

    मेरी तमाम उ'म्र कटी इंतिज़ार में

    मज्नूँ अगर नहीं सही कोहकन तो बन

    इतना तो हो कि मौत रहे इख़्तियार में

    वो ख़ून ही हमारी रगों में नहीं रहा

    दीवानगी का ख़ौफ़ हो जिस से बहार में

    सौ मेहरबानियों के ए'वज़ मुस्कुरा दिया

    सरकार ने कमाल किया इख़्तिसार में

    ऐसे कि इंतिज़ार की घड़ियाँ पूछिए

    जिस का कोई शरीक हुआ इंतिज़ार में

    पैदा करो किसी भी तरह दिल पे इख़्तियार

    दिल इख़्तियार में है तो सब इख़्तियार में

    क्यूँ ना-उम्मीद आप का उमीद-वार हो

    सब कुछ है क्या नहीं निगह-ए-शर्मसार में

    या मौत आएगी मुझे या नींद आएगी

    इक और शब गुज़ार तो दूं इंतिज़ार में

    इ'श्क़ और आप वाह 'सफ़ी' वाह वाह वाह

    ग़म और हा-ए-ज़िंदगी मुस्तआ'र में

    स्रोत :
    • पुस्तक : गुल्ज़ार-ए-सफ़ी (पृष्ठ 82)
    • रचनाकार : सफ़ी, औरंगाबादी
    • प्रकाशन : गोल्डेन प्रेस, हैदराबाद (1987)

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