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पद
निस-दिन खेलत रही सखियन संग मोहि बड़ा डर लागे
निस-दिन खेलत रही सखियन संग मोहि बड़ा डर लागेमोरे साहब की ऊँची अटरिया चढ़त में जियरा काँपे
कबीर
कविता
निस दिन जो हरिका गुण गायेरे।
निस दिन जो हरिका गुण गायेरे।बिगड़ी बात बाकी सब बन जाये रे।।
मुस्तफ़ा ख़ान यकरंग
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सलोक
बिना गुर निस दिन फिराँ नी माए पिर के हावे
बिना गुर निस दिन फिराँ नी माए पिर के हावेअउगण्यारी नूँ क्यूँ कर कंत वसावे
बाबा फ़रीद
कविता
बिन गुर निस दिन फिराँ नी माए फिर के हावै
बिन गुर निस दिन फिराँ नी माए फिर के हावैअउगण्यारी नूँ क्यूँ कर कंत वसावै
बाबा फ़रीद
कलाम
साँसों की माला पर सिमरूँ निस-दिन पी का नामअपने मन की मैं जानूँ और पी के मन की राम
तुफ़ैल हुश्यारपुरी
सूफ़ी लेख
चरणदासी सम्प्रदाय का अज्ञात हिन्दी साहित्य - मुनि कान्तिसागर - Ank-1, 1956
चरनदास महाराज परम गुरुदेवजी।तुम चरनन की हमरे निस दिन सेवजी।।1।।
भारतीय साहित्य पत्रिका
अरिल्ल
महमूदी चौतार हजारा पहिरता ।
हीरे मोती मुकता जवाहिर लाल रे ।निस दिन खूबी खैर खजाने माल रे ।।
गरीब दास
बारहमासा
भादों- लगा भादों मुझे दुख देने भारी।
कड़क सुन सुन के निस दिन दामिनी की।कंपत है देह थर थर कामिनी की।।
मक़सूद
सूफ़ी लेख
कवि वृन्द के वंशजों की हिन्दी सेवा- मुनि कान्तिसागर - Ank-3, 1956
सुजस बितांन तन्यौ रहै निस दिन बुद्धि अथाह।। छत्र छांह तिनकी बसै दौलत सुत खुसराम
भारतीय साहित्य पत्रिका
अरिल्ल
बिरह सपीड़ा सास वहै उर करद रे।
निस दिन करे पुकार वैध हरि आवही।परिहां, रामचरण बिन राम भरै नहिं पाव ही।।
रामचरन
सूफ़ी लेख
रसखान के वृत्त पर पुनर्विचार
जगदीश दिखावहि दिख्खिए, कहिं नरहरि निस दिन शुरक।सूरन बिन साह सलेम बिन, अकल विकल हिंदू तुरक।।