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सूफ़ी कहावत
ठाकुर-पत्थर, माला तक्कड़, गंगा जमुना पानी
ठाकुर-पत्थर, माला तक्कड़, गंगा जमुना पानीजब लग मन में सांच न उपजे, चारों बेद कहानी
वाचिक परंपरा
कलाम
सुल्तान बाहू
ना'त-ओ-मनक़बत
किसी पत्थर पे घिसने से न आब-ए-ज़र से जाता हैगुनह का दाग़ ज़िक्र-ए-साक़ी-ए-कौसर से जाता है
सग़ीर अहमद फ़रोग़
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कलाम
फ़ना बुलंदशहरी
सूफ़ी लेख
दानापुर - सूफ़ियों का मस्कन
लेकिन क़िस्मत का साद उन पर ही हुआपत्थर-पत्थर है और जौहर जौहर
रय्यान अबुलउलाई
दकनी सूफ़ी काव्य
हम दास तीन्ह के सुना हो लोकॉ !
गोवरधन नख पर गोकुल राखाबर्सन लागा जब मेहूँ पत्थर का
तुकाराम
सूफ़ी लेख
संत साहित्य - श्री परशुराम चतुर्वेदी
जेती देखे आतमा, तेते सालिगराम।बोलन हारा पूजिये, पत्थर से क्या काम।।
हिंदुस्तानी पत्रिका
सूफ़ी लेख
संत साहित्य
जेती देखे आतमा, तेते सालिगराम। बोलन हारा पूजिये, पत्थर से क्या काम।।
परशुराम चतुर्वेदी
गूजरी सूफ़ी काव्य
जुलेख़ा का क्रोध
बनाए थे वे हौज़ अज़ संगमरमर,न था उनके भीतर और दूजा पत्थर।
अमीन गुजराती
दकनी सूफ़ी काव्य
मसनवी गुलशने इश्क़
पत्थर होय सोना जिस पारस छाँव तेज़मीन का बी उबले धन इस नाव ते