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दकनी सूफ़ी काव्य
इशारतुल ग़ाफ़िलीन
ऐ साहब सत्तार ऐ किर्दगारके ऐ खालिक़ ख़ल्क़ परवर दिगार
सय्यद मुहम्मद आशिक बारह आल
दकनी सूफ़ी काव्य
किस्म ए समऊन
देखत सब फ़रिश्ते फ़लक के पुकारकहे तूँ हमारा है परवर दिगार
क़ादिर बीजापुरी
दकनी सूफ़ी काव्य
क़िस्सा चोर
ओ कुदरत का साहब है परवर दिगारज़मीं पर किया बाग़ कूँ अपने बार
शाह अब्दुल अली
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सूफ़ी लेख
हज़रत सय्यिद मेहर अ’ली शाह - डॉक्टर सय्यिद नसीम बुख़ारी
आपसे किसी ने सवाल किया शाह साहिब आप सय्यिद घराने से तअ’ल्लुक़ रखते हैं और आल-ए-रसूल
मुनादी
मल्फ़ूज़
शम्स दबीर ने सज्दा-ए-ता’ज़ीम बजा लाकर पूछा हुज़ूर निदा-ए-अलस्तु बिरब्बिकुम के वक़्त तमाम रूहें एक जगह