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तन दी चिखा बणावे दीपक
तन दी चिखा बणावे दीपक, तां आण जलन परवाने ।भांबड़ होर हज़ारां दिसदे, पर ओस पतंग दीवाने ।
हाशिम शाह
सूफ़ी लेख
हज़रत गेसू दराज़ का मस्लक-ए-इ’श्क़-ओ-मोहब्बत - तय्यब अंसारी
हज़रत अबू-बकर सिद्दीक़ रज़ी-अल्लाहु अ’न्हु ने फ़रमाया था:परवाने को चराग़ है, बुलबुल को फूल बस
मुनादी
ग़ज़ल
शो'ला है आब-ए-हयात-ए-दिल-ए-मुश्ताक़ 'सिराज'इस समुंदर सीं बड़ा फ़र्क़ है परवाने में
सिराज औरंगाबादी
ग़ज़ल
मज़ा जो आशिक़ी में है सो माशूक़ी में हरगिज़ नीं'सिराज' अब हो चुके अफ़सोस परवाने हुए होते
सिराज औरंगाबादी
ग़ज़ल
'सिराज' इस शम्अ कूँ है शौक़ परवाने जलाने कादुआ 'कर या इलाही मोम दिल होए हम नजीफ़ों सीं
सिराज औरंगाबादी
सूफ़ी लेख
अमीर खुसरो- पद्मसिंह शर्मा
ता सहर वह भी न छोड़ी तु ने ऐ बाद-ए-सबायादगार-ए-रौनक़-ए-महफ़िल थी परवाने की ख़ाक।
माधुरी पत्रिका
ग़ज़ल
'सिराज' ऐ शोला-रू है कौन सा सो मैं नहीं वाक़िफ़मुझे क्या पूछता है पूछ परवाने सीं हाल उस का
सिराज औरंगाबादी
ना'त-ओ-मनक़बत
हैं उसी अंजुमन-ए-हुस्न के जल्वे अब तकगो नहीं शम्अ' मगर सैंकड़ों परवाने हैं