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शे'र
निकल कर ज़ुल्फ़ से पहुँचूँगा क्यूँकर मुसहफ़-ए-रुख़ परअकेला हूँ अँधेरी रात है और दूर मंज़िल है
अकबर वारसी मेरठी
सूफ़ी लेख
क़व्वाली का अहद-ए-ईजाद और समाजी पस-ए-मंज़र
मूजिद-ए-क़व्वाली हज़रत अमीर ख़ुसरो का ‘अह्द इब्तिदा-ए-इस्लाम और मौजूदा ‘अह्द के ठीक दरमियान का ‘अह्द है
अकमल हैदराबादी
शे'र
पस-ए-मुर्दन इरादा दिल में था जो कू-ए-क़ातिल कालहद में ख़ुश हुआ मैं नाम सुनकर पहली मंज़िल का
ग़ाफ़िल लखनवी
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फ़ारसी कलाम
रबूद जाँ पस-ए-दिल चश्म-ए-'उज़्र ख़्वाह-ए-कसेशिकायतेस्त ब-सद 'अफ़्व अज़ निगाह-ए-कसे
मयकश अकबराबादी
ना'त-ओ-मनक़बत
पर्दा-ए-राज़ है ऐ दोस्त हर इंसाँ तेराकौन से दिल में कोई सर नहीं पिन्हाँ तेरा
शाह अकबर दानापूरी
शे'र
दिखाइए आज रू-ए-ज़ेबा उठाइए दरमियाँ से पर्दाकहाँ से अब इंतिज़ार-ए-फ़र्दा यही तो सुनते हैं उम्र-भर से