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शे'र
जिगर मुरादाबादी
शे'र
निकल कर ज़ुल्फ़ से पहुँचूँगा क्यूँकर मुसहफ़-ए-रुख़ पर
अकेला हूँ अँधेरी रात है और दूर मंज़िल है
अकबर वारसी मेरठी
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शे'र
महकने को गुल-ए-दाग़-ए-मोहब्बत दिल में है अपने
खटकने को है ख़ार-ए-हसरत-ए-दीदार आँखों में
कैफ़ी हैदराबादी
ना'त-ओ-मनक़बत
पैकर-ए-ख़लक़-ओ-मोहब्बत हैं शह-ए-तेग़-ए-अ’ली
साहब-ए-किरदार-ओ-सीरत हैं शह-ए-तेग़-ए-अ’ली
ज़फ़र अंसारी ज़फ़र
शे'र
उ’मूमन ख़ाना-ए-दिल में मोहब्बत आ ही जाती है
ख़ुदी ख़ुद-ए’तिमादी में बदल जाये तो बंदों को
फ़क़ीर क़ादरी
कलाम
फ़ना होना मोहब्बत में हयात-ए-जावेदानी है
किसी क़ातिल पे दम निकले तो लुत्फ़-ए-ज़िंदगानी है
फ़ना लखनवी
कलाम
क़मर जलालवी
बैत
जी चाहता है उम्र-ए-मोहब्बत न ख़त्म हो
जी चाहता है उम्र-ए-मोहब्बत न ख़त्म हो
मर जाइए किसी की तमन्ना लिए हुए
फ़ितरत वारसी
शे'र
जिस्म का रेशा रेशा मचले दर्द-ए-मोहब्बत फ़ाश करे
इ’शक में 'काविश' ख़ामोशी तो सुख़नवरी से मुश्किल है
अब्दुल हादी काविश
शे'र
मोहब्बत ख़ौफ़-ए-रुस्वाई का बाइ'स बन ही जाती है
तरीक़-ए-इश्क़ में अपनों से पर्दा हो ही जाता है
मुज़्तर ख़ैराबादी
ना'त-ओ-मनक़बत
रहा जोश-ए-मोहब्बत का यूँ ही गर मौजज़न तूफ़ाँ
फ़िदा हो जाएँगे हम आप पर या हज़रत-ए-जीलाँ