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निकल कर ज़ुल्फ़ से पहुँचूँगा क्यूँकर मुसहफ़-ए-रुख़ परअकेला हूँ अँधेरी रात है और दूर मंज़िल है
अकबर वारसी मेरठी
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ना'त-ओ-मनक़बत
पैकर-ए-ख़लक़-ओ-मोहब्बत हैं शह-ए-तेग़-ए-अ’लीसाहब-ए-किरदार-ओ-सीरत हैं शह-ए-तेग़-ए-अ’ली
ज़फ़र अंसारी ज़फ़र
ना'त-ओ-मनक़बत
उस पैकर-ए-जमाल का जल्वा भी देख लेक़ुरआँ के सफ़हा सफ़हा में चेहरा उसी का ढूँड
इल्तिफ़ात अमजदी
ना'त-ओ-मनक़बत
जो आ’शिक़-ए-जमाल-ए-हबीब-ए-ख़ुदा नहींक़िस्मत में उस की हज़रत-ए-हक़ की लिक़ा नहीं
शाह अकबर दानापूरी
ना'त-ओ-मनक़बत
दिल-रुबा है किस क़दर शान-ए-जमाल-ए-ग़ौस-ए-पाकहै जहाँ शैदा-ए-हुस्न-ए-बे-मिसाल-ए-ग़ौस-ए-पाक
शकील बदायूँनी
ग़ज़ल
ऐ 'अक्स-ए-जमाल-ए-लम-यज़ली ऐ शम-ए'-तजल्ला क्या कहनाऐ नूर-ए-हिजाबात-ए-फ़ितरत ऐ हुस्न-ए-सरापा क्या कहना
मंज़ूर आरफ़ी
ना'त-ओ-मनक़बत
जमाल-ए-हैदरी और अ'क्स-ए-मुस्तफ़ा हूँ मैंकहा हुसैन ने दिल बंद-ए-फ़ातिमा हूँ मैं