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जमदीं लादी इशक़ दी गट्ठड़ी शौक़ प्याले पीते ।
जमदीं लादी इशक़ दी गट्ठड़ी शौक़ प्याले पीते ।जींदी मोईं हिक्क यार दे रहसों सच्ची पीत प्रीते ।
ख़्वाजा ग़ुलाम फ़रीद
पद
साक़ी दौलत से तेरी हम पाएँ भर भर प्याले मुल
साक़ी दौलत से तेरी हम पाएँ भर भर प्याले मुलगिरह जो दिल में आन पड़ी हैं एक दफ़ा सब जावें खुल
कवि दिलदार
दकनी सूफ़ी काव्य
चन्दा ऐन ईदी बशारत दिखाया
सुराही सुरो-सानी छन्दाँ सूँप्याले-रतन मौज आरत दिखाया
कुली कुतुब शाह
दकनी सूफ़ी काव्य
प्यारी के मुख म्याने खेल्या बसन्त
नवी बाली कू नली (?) क़दम में भेजेप्रीत प्याले भर कर पिलाया बसन्त
कुली कुतुब शाह
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काफी
रहु रहु उए इश्का मारिआ ई
रहु रहु उए इश्का मारिआ ई ।मुग़लां ज़हर प्याले पीते, भूरियां वाले राजे कीते,
बुल्ले शाह
सूफ़ी लेख
उमर खैयाम की रुबाइयाँ (समीक्षा)- श्री रघुवंशलाल गुप्त आइ. सी. एस.
नभ के प्याले में दिनकर की माणिक-सुधा ढालते देख कलियाँ अधरपुटों को खोले ललक रही हैं उसकी ओर।
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी प्रतीक
जाम-ए-जम
कहते हैं कि बादशाह जमशेद ने अंगूरी शराब इजाद की थी और वह उसी प्याले में शराब पिया करता था.
अज्ञात
सूफ़ी शब्दावली
(मध-विक्रेता) ׃ मुर्शिद जो आध्यात्मिक प्रेम की शराब के प्याले पिला कर अपने मुरीदों को मस्त करता है.