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शे'र
निकल कर ज़ुल्फ़ से पहुँचूँगा क्यूँकर मुसहफ़-ए-रुख़ परअकेला हूँ अँधेरी रात है और दूर मंज़िल है
अकबर वारसी मेरठी
सूफ़ी कहावत
ज़ियारत-ए-बुज़ुर्गां कफ़ारह-ए-गुनाह
ज़ियारत-ए-बुज़ुर्गां कफ़ारह-ए-गुनाहबड़े-बूढ़ों का सम्मान करने से पापों की क्षय होता है
वाचिक परंपरा
सूफ़ी कहानी
एक शख़्स का दा’वा कि ख़ुदा गुनाह पर मेरी गिरफ़्त नहीं करता और हज़रत-ए-शुऐ’ब का जवाब- दफ़्तर-ए-दोउम
हज़रत-ए-शुऐ’ब के ज़माने में एक शख़्स कहा करता था कि खुदा ने मेरे अन-गिनत ऐ’ब देखे
रूमी
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सूफ़ी उद्धरण
तौबा जब मंज़ूर हो जाती है तो याद-ए-गुनाह भी ख़त्म हो जाती है
तौबा जब मंज़ूर हो जाती है तो याद-ए-गुनाह भी ख़त्म हो जाती है।
वासिफ़ अली वासिफ़
बैत
गुनाह से आश्नाई जब नहीं रखते फ़रिश्ते फिर
गुनाह से आश्नाई जब नहीं रखते फ़रिश्ते फिरगुनाह लिखते हुए शायद फ़रिश्ता सोचता होगा
मोहम्मद समी
सूफ़ी उद्धरण
मुआ’फ़ कर देने वाले के सामने गुनाह की क्या अहमियत? अ’ता के सामने ख़ता का क्या ज़िक्र?
मुआ’फ़ कर देने वाले के सामने गुनाह की क्या अहमियत? अ’ता के सामने ख़ता का क्या ज़िक्र?
वासिफ़ अली वासिफ़
सूफ़ी उद्धरण
ग़रीबों में दौलत तक़सीम कर देना नेकी है, अमीरों से दौलत छीन लेना गुनाह।
ग़रीबों में दौलत तक़सीम कर देना नेकी है, अमीरों से दौलत छीन लेना गुनाह।
वासिफ़ अली वासिफ़
शे'र
यही ख़ैर है कहीं शर न हो कोई बे-गुनाह इधर न होवो चले हैं करते हुए नज़र कभी इस तरफ़ कभी उस तरफ़
अकबर वारसी मेरठी
ना'त-ओ-मनक़बत
माना कि 'उम्र गुज़री है सारी गुनाह मेंलेकिन अब आ गया हूँ तेरी बारगाह में