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सूफ़ी कहावत
हर के रा मी ख़्वाही बा श्नासी या बा उ मु'आमला कुन या सफ़र कुन
किसी व्यक्ति की सच्ची प्रकृति को जानने के लिए, उसके साथ व्यवहार करें या यात्रा करें।
वाचिक परंपरा
बैत
बदाँ रा नवाज़िश कुन ऐ नेक-मर्द
बदाँ रा नवाज़िश कुन ऐ नेक-मर्दकि सग पास दारद चू नान-ए-तू ख़ुर्द
सादी शीराज़ी
बैत
मुराआत दहक़ान कुन अज़ बहर-ए-ख़ेश
मुराआत दहक़ान कुन अज़ बहर-ए-ख़ेशकि मज़दूरे ख़ुशदिल कुनद कार-ए-बेश
सादी शीराज़ी
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फ़ारसी सूफ़ी काव्य
रहमे कुन-ओ-मशो ज़े मन ऐ जान-ए-मन जुदातर्सम कि अज़ फ़िराक़ शुद जाँ ज़े तन जुदा
शाह अकबर दानापूरी
बैत
कुन से तो नहीं चलते इंसाँ के कार-ख़ाने
कुन से तो नहीं चलते इंसाँ के कार-ख़ानेतदबीर से 'अमल से बनते हैं सब ज़माने
मोहम्मद समी
कलाम
कुन-फ़-यकून जदों फ़रमाया असाँ भी कोले हासे हूहिक्के ज़ात सिफ़ात रब्बे दी हिक्के जग ढूँडयासे हू
सुल्तान बाहू
काफी
क्यूँ लोड़ कल्हड़ी विच्च कुन कपर दे
क्यूँ लोड़ कल्हड़ी विच्च कुन कपर देरोधे डितो नी पिछली उमर दे
ख़्वाजा ग़ुलाम फ़रीद
सूफ़ी कहावत
तारुफ़ कम कुन-ओ-बर मब्लग़ अफ़जाय
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