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सवाल - कि बाशम मन मरा अज़ मन ख़बर कुन

महमूद शबिस्तरी

सवाल - कि बाशम मन मरा अज़ मन ख़बर कुन

महमूद शबिस्तरी

MORE BYमहमूद शबिस्तरी

    सवाल

    प्रश्न

    कि बाशम मन मरा अज़ मन ख़बर कुन

    चे मा'नी दारद अंदर ख़ुद सफ़र कुन

    मैं कौन हूँ? मुझे अपने आप पर प्रगट कर दे। “तू स्वयम् अपने अन्दर यात्रा कर इसका क्या आशय है?

    जवाब

    तूने फिर यही प्रश्न किया कि मैं क्या वस्तु है? मुझको बता दे कि यह मैं कौन है?

    दिगर कर्दी सवाल अज़ मन कि मन चीस्त

    मरा अज़ मन ख़बर कुन ता कि मन कीस्त

    जब इस जीवन की तरफ़ स्वाभाविक ढंग से इशारा किया जाता है तब मैं शब्द के साथ उसका वर्णन करते हैं।

    चू हस्ती मुतलक़ आमद दर इशारत

    ब-लफ्ज़-ए-मन कुनंद आँ रा इबारत

    जो रहस्य वास्तविकता के रूप में परिणित हो गया है तूने शब्दों में उसको मैं कहा है।

    हक़ीक़त गर तअ'य्युन शुद मुअ'य्यन

    तू रा दर इबारत गुफ़्त:-इ मन

    मैं और तू सब उसी अस्तित्व से सम्बन्ध रखते हैं और अस्तित्व के दीपक की जालियाँ है।

    मन-ओ-तू आ'रिज़-ए-ज़ात-ए-वजूदेम

    मुशब्बकहा-ए-मिशकात-ए-वजूदेम

    जब तू बुद्धि को अपना पथ प्रदर्शक मानता है, उस समय तू यह नहीं विचार करता कि तुझमें और बुद्धि में अन्तर है—दोनों एक दूसरे से भिन्न हैं।

    हमा यक नूर-दाँ अश्बाह-ए-अरवाह

    गह अज़ आईन: पैदा गह ज़े-मिस्बाह

    अपने आपको अच्छी तरह पहचान ले। सूजन और मुटापा एक ही वस्तु को नहीं कहते हैं।

    तू गोई लफ्ज़-ए-मन दर हर इबारत

    ब-सू-ए-रूह मी-बाशद इशारत

    मैं और तू दोनों प्राण और शरीर से बहुत बढ़े चढ़े है, क्योंकि यह दोनों अहम् अंश हैं।

    चू कर्दी पेश्वा-ए-ख़ुद ख़िरद रा

    नमी-दानी ज़े-जुज़्व-ए-ख़्वेश ख़ुद रा

    अहम् के शब्द से केवल मनुष्य का बोध नहीं होता है जिससे तू यह समझ ले कि केवल प्राणों के कारण यह शब्द आता है।

    ब-रौ ख़्वाजः ख़ुद रा नेक ब-शनास

    कि न-बुवद फ़रबही मानिंद-ए-आमास

    एक बार तू इस क्षणिक जगत से ऊपर चला जा और अपने अन्दर एक दूसरे ही जग का निर्माण कर।

    मन-ओ-तू बर तर अज़ जान-ओ-तन आमद

    कि ईं हर-दो ज़े-अज्ज़ा-ए-मन आमद

    इस जीवन में अद्वैत के भ्रम से भी अपने आपको पृथक कर ले। देखने के समय मन दो आँख वाली वस्तु बन जाता है।

    ब-लफ़्ज़-ए-मन इंसान-अस्त मख़्सूस

    कि ता गोई बूद जान-अस्त मख़्सूस

    अस्तित्व स्वर्ग के समान है और यह संसार नर्क के तुल्य है। इन दोनों के मध्य में मैं और तू एक निर्दिष्ट सीमा के समान खड़े हुए हैं।

    यके रह बर तर अज़ कौन-ओ-मकाँ शौ

    जहाँ ब-गुज़ार ख़ुद दर ख़ुद जहाँ शौ

    जब यह भेद भाव मिट जाएगा उस समय धर्म और दीन की आज्ञाएँ भी शेष रहेंगी।

    ज़े-ख़त्त-ए-वहमी-हा-ए-हुवीयत

    दो चश्मी मी शवद दर वक़्त-ए-रोयत

    धर्म ग्रन्थों की सारी बातें केवल तेरे अहंकार पर निर्भर हैं। तू समझता है कि अहम् तेरे प्राणों और शरीर के साथ बँधा हुआ है।

    न-मानद दरमियानः रह-रव-ए-राह

    चु हाए-हू शवद मुल्हक़ ब-अल्लाह

    जब “मैं और तू तेरे बीच में रह जाएँगे उस समय मन्दिर, मस्जिद और गिरिजा सब तेरे लिये समान हो जाएँगे।

    बुवद हस्ती बहिश्त इम्काँ चु दोज़ख़

    मन-ओ-तू दरमियाँ मानिंद-ए-बर्ज़ख़

    इस स्थान में मूल और शाख़ाएँ सब एक ही दिखलाई पड़ रही हैं। ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार कि इकाई के अंक में सभी सम्मिलित हैं।

    चु बर-ख़ेज़द तू-रा ईं पर्द: अज़ पेश

    न-मानद नीज़ हुक्म-ए-मज़हब-ओ-केश

    तू मूल है अथवा इकाई। तू ही मुख्य वस्तु है। तुझी में से सब की उत्पत्ति है।

    हम: हुक्म-ए-शरीअ'त अज़ मन-ओ-तुस्त

    कि आँ बर बस्त:-ए-जान-ओ-तन-ए-तुस्त

    मन-ओ-तू चूँ न-मानद दरमियानः

    चे मस्जिद चे कुनिश्त चे दैर-ख़ान:

    तअ'य्युन नुक़्त:-ए-वहमी-अस्त दर ऐन

    चू साफ़ी गश्त गैर-ए-तू शुद ऐन

    दो ख़ुत्व: बेश न-बुवद राह-ए-सालिक

    अगरचे दारद चंदें महालिक

    यक अज़ हा-ए-हुयत दर गुज़श्तन

    दोवम सहरा-ए-हस्ती दर नविश्तन

    दरीं मशहद यके शुद जम्अ'-ओ-अफ़राद

    चू वाहिद सारी अंदर ऐ'न-ओ-आ'दाद

    तू आँ जमई' कि ऐ'न-ए-वह्दत आमद

    तू आँ वाहिद कि ऐ'न-ए-कसरत आमद

    कसे ईं सिर शनासद कू गुज़र कर्द

    ज़े-जुज़् वै सू-ए-कुल्ली यक सफ़र कर्द

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