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शे'र
जल्वे से तिरे है कब ख़ाली फल फूल फली पत्ता डालीहै रंग तिरा गुलशन गुलशन सुब्हान-अल्लाह सुब्हान-अल्लाह
अकबर वारसी मेरठी
कलाम
न तू माह बन के फ़लक पे रह न तू फूल बन के चमन में आये तमाम जल्वे समेट कर किसी दिल-गुदाज़-ए-फबन में आ
एहसान दानिश
गूजरी सूफ़ी काव्य
ख़ुश्बू मनें है फूल मस्त सूंघन मने भँवरा है मस्त
ख़ुश्बू मनें है फूल मस्त सूंघन मने भँवरा है मस्तआक़िल है मस्त-ए-अक़ल ख़ुद मस्ती मनें मशहूर मस्त
पीर सय्यद मोहम्मद अक़दस
ग़ज़ल
कभी चार फूल चढ़ा दिए जो किसी ने मेरे मज़ार परतो हज़ारों चर्ख़ से बिजलियाँ गिरीं एक मुश्त-ए-ग़ुबार पर
अफ़क़र मोहानी
नज़्म
गुलशन-ए-हिंदुस्तान
गुलशन की शादाब फ़ज़ा है फूल खिले हैं डाली डालीकितने दिल-कश बर्ग-ओ-समर हैं कितनी है सुन्दर हरियाली
अज़ीज़ वारसी देहलवी
शे'र
तैरता है फूल बन कर बह्र-ए-ग़म में दिल मिराकिस तरह डूबे वो कश्ती जिसमें कुछ लंगर न हो
रज़ा फ़िरंगी महल्ली
शे'र
तैरता है फूल बन कर बह्र-ए-ग़म में दिल मिराकिस तरह डूबे वो कश्ती जिसमें कुछ लंगर ना हो
रज़ा फ़िरंगी महल्ली
कवित्त
फूल बिन बाग जैसे, वाणी बिन राग जैसे
फूल बिन बाग जैसे, वाणी बिन राग जैसे,पानी बिन तड़ाग अरु रूप बिन अंग है।