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सलोक
बाजे बजे मौति दे चड़या मलक-उल-मौतु
बाजे बजे मौति दे चड़या मलक-उल-मौतुघिनन वाहीं जयन्दुड़ी ढाहन वाहें कोट
बाबा फ़रीद
शबद
ब्रह्म रूप अति झीना, रे मानवा ।
ब्रह्म रूप अति झीना, रे मानवा ।स्वाँस स्वाँसा सुरत समोवो बजे सोह की वीणा ।
स्वामी आत्मप्रकाश
कवित्त
पैसे बिन बाप कहे पूत तो कपूत भयो
कहै 'अलमस्त' सजे बजे रहौ आठौ जाम,आजु के जमाने में पैसे की बड़ाई है।।
अलमस्त
दकनी सूफ़ी काव्य
मसनवी इसरार इश्क़
बजे बिन थाल यो आवाज़ क्या है ?जो घर नंई है तो यो दरवाज़ा क्या है ?
मोमिन दकनी
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सूफ़ी लेख
तज़्किरा कुतुब-ए-आलम हज़रत शाह क़ुतुब अली बनारसी
हज़रत क़ुतुब-ए-’आलम का ’उर्स हर साल 26/ और 27/ रजबुल-मुरज्जब को बड़ी धूम-धाम से मनाया जाता
इल्तिफ़ात अमजदी
सूफ़ी लेख
हज़रत सय्यिद मेहर अ’ली शाह - डॉक्टर सय्यिद नसीम बुख़ारी
आपका मा’मूल था कि फ़ज्र के वक़्त से दस बजे दिन तक ज़िक्र-ओ-अज़्कार में अपने आपको
मुनादी
होली
गुल शोर हुए ख़ुश-हाली के और नाचने गाने के खटकेमृदंगे बाजें ताल बजे कुछ खनक खनक कुछ धनक धनक
नज़ीर अकबराबादी
सूफ़ी लेख
ज़फ़राबाद की सूफ़ी परंपरा
मख़्दूम बंदगी शैख़ जलालुल्हक़ क़ाज़ी खां नासेहीआप का जन्म 1402 ई. में बल्ख में हुआ था.