Font by Mehr Nastaliq Web

जब आई होली रँग-भरी सौ नाज़-अदा से मटक मटक

नज़ीर अकबराबादी

जब आई होली रँग-भरी सौ नाज़-अदा से मटक मटक

नज़ीर अकबराबादी

MORE BYनज़ीर अकबराबादी

    जब आई होली रँग-भरी सौ नाज़-अदा से मटक मटक

    और घुँघट के पट खोल दिए वह रूप दिखाया चमक चमक

    कुछ मुखड़ा करता दमक दमक कुछ अबरन करता झलक झलक

    जब पाँव रखा ख़ुश-वक़्ती से एक पायल बाजी झनक झनक

    कुछ उछलेंं सैनैं नाज़ भरें कुछ कूदें आहें थिरक थिरक

    ये रूप दिखा कर होली के जब नैन रसीले टुक मटके

    मँगवाएँ थाल गुलालों के भरवाएँ रंगों से मटके

    फिर स्वाँग बहुत तयार हुए और ठाठ ख़ुशी के झुरमुट के

    गुल शोर हुए ख़ुश-हाली के और नाचने गाने के खटके

    मृदंगे बाजें ताल बजे कुछ खनक खनक कुछ धनक धनक

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY
    बोलिए