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शे'र
निकल कर ज़ुल्फ़ से पहुँचूँगा क्यूँकर मुसहफ़-ए-रुख़ परअकेला हूँ अँधेरी रात है और दूर मंज़िल है
अकबर वारसी मेरठी
ना'त-ओ-मनक़बत
दिल में दर्द-ए-शह-ए-कौनैन की दौलत है बड़ीहूँ तो नादार मैं लेकिन मिरी क़ीमत है बड़ी
मुनव्वर बदायूँनी
सूफ़ी लेख
हज़रत महबूब-ए-इलाही ख़्वाजा निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी के मज़ार-ए-मुक़द्दस पर एक दर्द-मंद दिल की अ’र्ज़ी-अ’ल्लामा इक़बाल
सूफ़ीनामा आर्काइव
कलाम
दिल जिगर को आश्ना-ए-दर्द-ए-उल्फ़त कर दियाइक निगाह-ए-नाज़ ने सामान-ए-राहत कर दिया
अब्दुल हादी काविश
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शे'र
हाल-ए-दिल है कोई ख़्वाब-आवर फ़साना तो नहींनींद अभी से तुम को ऐ यारान-ए-महफ़िल आ गई
हफ़ीज़ होश्यारपुरी
ग़ज़ल
क्यूँ कर मैं ख़ाक डालूँ सोज़-ए-दिल-ए-तपाँ परमानिंद-ए-शम्अ' मेरा कब हुक्म है ज़बाँ पर