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पद
साधना का फल - अमी की बरखा हुई भारी भींज रही अतर सुत प्यारी
अमी की बरखा हुई भारी भींज रही अतर सुत प्यारीसजी जहँ तहँ कंवलन क्यारी शब्द गुल फूली फुलवारी
शालीग्राम
शबद
वो देश दिवाना जी पहुँचै कोई सन्त जना
बरखै अमिरत बरखा जी पाया आनंद घनाहोवै शब्द अखंडित जी बज रह्या रैन बिना
ईष्वरदास
कृष्ण भक्ति सूफ़ी कलाम
रुत बरखा की आई सुहानी रिमझिम-रिमझिम बरसे पानीपागल मनवा हर-पल तड़पे बाँके मुर्शिद याद है आए
अब्दुल हादी काविश
काफी
तुसीं करो असाडी कारी
मैं शहु दरिआवां पईआं ठाठां लहराँ दे मूंह गईआंफड़ के घुंमन घेर भवईआं उपर बरखा रैन अँधियारी
बुल्ले शाह
पद
सुरत की प्रगति - आज घिर आये बादल कारे गरज गरज घन गगन पुकारे
चहुं दिस बरखा होवत भारी भीज रही सुर्त सुन झनकारेउमंग उमंग सुर्त चढ़त अधर में निरख रही घट जोत उजारे
शालीग्राम
सावन
प्रीतम बरखा बड़ी मतवाली ऐसा करे है सिंघार रेसाँसों की माला बनी सुर माला धड़कन से होवे गुहार रे
ज़िया अलवी
ग़ज़ल
सब के बालम बरखा रुत में लौट के घर आ जाते हैंझूलों की रुत में भी मेरा सूना आँगन रहता है