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सूफ़ी लेख
अज़ीज़ सफ़ीपुरी और उनकी उर्दू शा’इरी
शगुफ़्ता है बहारों से ये गुलज़ार-ए-जहाँ कैसातमाशा देखो हर गुल का न पूछो ये कि हाँ कैसा
ज़फ़र अंसारी ज़फ़र
ना'त-ओ-मनक़बत
चढ़ गया मौसम पे फ़िरदौसी बहारों का ग़लाफ़वादीयों से हो रहा था नूर हक़ का इन्किशाफ़