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ना'त-ओ-मनक़बत
तुम्हारा रंग फूलों में तो नुज़हत है बहारों मेंतुम्हारे जिस्म-ए-अतहर की है ख़ुश्बू लाला-ज़ारों में
कलीम ताहिरी
ग़ज़ल
बहारों में रहा करता है उन का इंतिज़ार अब भीवो आ जाएँ बयाबानों में तो आ जाए बहार अब भी
ख़्वाजा नाज़िर निज़ामी
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कलाम
तुम्हारा नूर ही सारी है उन सारी बहारों मेंबहारों में निहाँ तुम हो बहारों में निहाँ तुम हो
मुस्तफ़ा रज़ा ख़ान
सूफ़ी लेख
अज़ीज़ सफ़ीपुरी और उनकी उर्दू शा’इरी
शगुफ़्ता है बहारों से ये गुलज़ार-ए-जहाँ कैसातमाशा देखो हर गुल का न पूछो ये कि हाँ कैसा
ज़फ़र अंसारी ज़फ़र
ना'त-ओ-मनक़बत
चढ़ गया मौसम पे फ़िरदौसी बहारों का ग़लाफ़वादीयों से हो रहा था नूर हक़ का इन्किशाफ़