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शे'र
निकल कर ज़ुल्फ़ से पहुँचूँगा क्यूँकर मुसहफ़-ए-रुख़ परअकेला हूँ अँधेरी रात है और दूर मंज़िल है
अकबर वारसी मेरठी
फ़ारसी कलाम
तर्क-ए-चश्म-ए-मख़्मूरश मस्त-ए-ना-तवानीहास्तफ़ित्न: बा निगाह-ए-ऊ गर्म-ए-हम अ'नानीहास्त
साएब तब्रेज़ी
मल्फ़ूज़
बाबा फ़रीद
समस्त
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ग़ज़ल
जो हम तर्क-ए-’आलाइक़ कर के कू-ए-यार में आएतो ख़ारिस्ताँ से गोया गुलशन-ए-बे-ख़ार में आए
ख़्वाजा अज़ीज़ुल हसन मज्ज़ूब
कलाम
फ़राज़ वारसी
ग़ज़ल
आरज़ू भी दिल में तर्क-ए-आरज़ू भी दिल में हैआदमी की जान मुश्किल क्या बड़ी मुश्किल में है
सफ़ी औरंगाबादी
सूफ़ी कहानी
इब्राहीम अदहम के तख़्त-ओ-ताज को तर्क करने का सबब
एक रात वो बादशाह अपनी ख़्वाब-गाह में सो रहे थे और निगहबान चारों तरफ़ पहरा दे