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शे'र
निकल कर ज़ुल्फ़ से पहुँचूँगा क्यूँकर मुसहफ़-ए-रुख़ परअकेला हूँ अँधेरी रात है और दूर मंज़िल है
अकबर वारसी मेरठी
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
तन पीर गश्त व आरज़ू-ए-दिल जवाँ हुनूज़दिल ख़ूँ शुद व हदीस-ए-बुताँ बर ज़बाँ हुनूज़
अमीर ख़ुसरौ
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
शगुफ़्तः शुद गुल-ए-हमरा-ओ-गश्त बुलबुल मस्तसला-ए-सर-ख़ुश ऐ सुफि़यान-ए-बाद:-परस्त
हाफ़िज़
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शे'र
कब दिमाग़ इतना कि कीजे जा के गुल-गश्त-ए-चमनऔर ही गुलज़ार अपने दिल के है गुलशन के बीच
मीर मोहम्मद बेदार
कलाम
ख़याल आया जो उस मह-रू को गुल-गश्त-ए-ख़ियाबाँ कानज़र कुछ और ही आने लगा 'आलम-ए-गुलिस्ताँ का
सय्यद अली केथ्ली
क़िता'
अफ़सर नारवी
ग़ज़ल
फ़स्ल-ए-गुल का ग़म दिल-ए-नाशाद पर बाक़ी रहाहश्र लग ये मुज़लिमा सय्याद पर बाक़ी रहा
सिराज औरंगाबादी
कलाम
अज़्म-ए-फ़रियाद! उन्हें ऐ दिल-ए-नाशाद नहींमस्लक-ए-अहल-ए-वफ़ा ज़ब्त है फ़रियाद नहीं
सीमाब अकबराबादी
ना'त-ओ-मनक़बत
है शम्-ए'-तजल्ली रुख़-ए-दिल जु-ए-मोहम्मदपरवाना-सिफ़त खिंचते हैं दिल सू-ए-मोहम्मद