शगुफ़्त: शुद गुल-ए-हमरा-ओ-गश्त बुलबुल मस्त
रोचक तथ्य
अनुवाद: शंकर महेशवरी
शगुफ़्तः शुद गुल-ए-हमरा-ओ-गश्त बुलबुल मस्त
सला-ए-सर-ख़ुश ऐ सुफि़यान-ए-बाद:-परस्त
लाल फूल खिल गए, बुलबुलों में आई आनंद हिलोर
मदिरा के साधक प्रेमी-जन गाओ खुशियों के गाने
असास-ए-तौबः कि दर मुहकमी चु संग नमूद
ब-बीं कि जाम-ए-ज़ुजाज-ए-चे-गुन:अश ब-शिकस्त
पत्थर सी जो नींव कठिन थी सद-आचरण प्रतिज्ञा की
क्या कमाल है, उसे तोड़ डाला शीशे के प्याले ने
बयार बाद: कि दर बारगाह-ए-इस्तिग़्ना
चे पासबान-ओ-चे सुल्ताँ चे होशयार-ओ-चे मस्त
यह दरबार उपेक्षाओं का, यहाँ नृपति क्या, प्रहरी क्या
बुद्धिमान हो या रसज्ञ हो सबको तू बस मदिरा दे
अज़ ईं रबात-ए-दो-दर चूँ मुक़र्रर-अस्त रहील
रवाक़-ए-ताक़-ए-मईशत चे सर-बुलंद-ओ-चे पस्त
इस दो द्वारों की पथशाला से जब सबको जाना है
तब क्या धरा कि जीवन मण्डप ऊँचा हो या नीचा हो
ब-हस्त-ओ-नीस्त म-रंजाँ ज़मीर-ओ-ख़ुश मी-बाश
कि नीस्ती-अस्त सर-अंंजाम-ए-हर-कमाल कि हस्त
है या नहीं सोच कर मन को दुखी न कर ख़ुश रह जग में
जितने भी कौशल हैं उनका अंत नहीं में होना है
शिकोह आसफ़ी-ओ-अस्प-ए-बाद-ओ-मंतिक़-ए-तैर
ब-बाद रफ़्त व अज़ ऊ ख़्वाजः हेच तरफ़ न-बस्त
वो आसिफ़ का तेज, पवन का अश्व, पक्षियों से बातें
सभी हो गए लीन हवा में नृप को कुछ भी नहीं मिला
ब-बाल-ओ-पर म-रौ अज़ रह कि तीर-ए-परताबी
हवा गिरफ़्त ज़माने वले ब-ख़ाक नशिस्त
पंखों के बल पर इतरा कर छोड़ न देना आपनी राह
सिर्फ़ जोश का तीर तनिक फर-फर कर रज में मिल जाता
ज़बान-ए-किल्क-ए-तु 'हाफ़िज़' चे शुक्र आँ गोयद
कि तोहफ़:-ए-सुख़नश मी-बरंद दस्त-ब-दस्त
झट ले लेते हैं जो ‘हाफ़िज़’जिसकी कविता का उपहार
वही कलम की वाणी तेरी क्या उनका लेगी आभार
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