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शे'र
निकल कर ज़ुल्फ़ से पहुँचूँगा क्यूँकर मुसहफ़-ए-रुख़ परअकेला हूँ अँधेरी रात है और दूर मंज़िल है
अकबर वारसी मेरठी
ना'त-ओ-मनक़बत
बहार-ए-बाग़-ए-जन्नत है बहार-ए-रौज़ा-ए-साबिरज्वार-ए-अ’र्श-ए-आ’ला है ज्वार-ए-रौज़ा-ए-साबिर
बेदम शाह वारसी
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ना'त-ओ-मनक़बत
मुज़्दा-बाद ऐ 'आसियो शाफ़े'-ए-शह-ए-अबरार हैतहनियत ऐ मुजरिमो ज़ात-ए-ख़ुदा ग़फ़्फ़ार है
अहमद रज़ा ख़ान
ना'त-ओ-मनक़बत
सुन ऐ बाद-ए-सबा तु जानिब-ए-तैबः अगर गुज़रेतू जा कर थामना बाब-ए-हरीम-ए-ख़ास के पर्दे
मुज़्तर ख़ैराबादी
ना'त-ओ-मनक़बत
सुन ऐ बाद-ए-सबा तू जानिब-ए-तैबा अगर गुज़रेतो जा कर थामना बाब-ए-हरीम-ए-ख़ास के पर्दे
मुज़्तर ख़ैराबादी
कलाम
फिर बहार आई चमन में ज़ख़्म-ए-दिल आए हुएफिर मिरी दाग़-ए-जुनूँ आतिश की पर काले हुए
इमाम बख़्श नासिख़
कलाम
पीर नसीरुद्दीन नसीर
शे'र
ख़ुदा रक्खे अजब कैफ़-ए-बहार-ए-कू-ए-जानाँ हैकि दिल है जल्वः-सामाँ तो नज़र जन्नत-ब-दामाँ है
अफ़क़र मोहानी
कलाम
नुमायाँ कर दिया उस ने बहार-ए-रू-ए-ख़ंदाँ कोकि दी नग़्मे को मस्ती रंग कुछ सेहन-ए-गुलिस्ताँ को
असग़र गोंडवी
ग़ज़ल
चेहरे पे कुछ मुसर्रत-ए-फ़स्ल-ए-बहार क्या हैदिल में अलम की शिद्दत-ए-फ़स्ल-ए-बहार क्या है
हसन इमाम वारसी
ना'त-ओ-मनक़बत
ये दे देना ख़बर बाद-ए-सबा अजमेर वाले कोकि करता याद है इक मुब्तला अजमेर वाले को