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पद
मुरली के पद - भई हों बावरी सुन के बाँसुरी
भई हों बावरी सुन के बाँसुरीश्रवण सुनत मेरी सुध-बुध बिसरी
मीराबाई
पद
सावन - पिय बिन बिरहिन बावरी जिय जस कसकत हूल
पिय बिन बिरहिन बावरी जिय जस कसकत हूलसूल उठै पति पीर की धन संपत सुख धूल
तुलसी साहिब हाथरस वाले
सूफ़ी लेख
चरणदासी सम्प्रदाय का अज्ञात हिन्दी साहित्य - मुनि कान्तिसागर - Ank-1, 1956
14 नगरिया बावरी रे 4 सोरठ15 हरि रंग भीजिया साधो 4 सोरठ
भारतीय साहित्य पत्रिका
सतसई
।। बिहारी सतसई ।।
मोहिँ करत कत बावरी करैं दुराउ दुरैं न।कहे देत रँग रीति के रँग निचुरत से नैन।।579।।
बिहारी
राग आधारित पद
भैरवो यत- गुरु बिन होरी कौन खेलावे कोई पथ लगावै।
तीन लोक माया फूक के को ऐसो फाग रमावै।हरि हेरत में फिरत बावरी हरि नयनन में कब आवै।।
क़ाज़िम वा क़ायम
बारहमासा
श्रावण- सावन आवन कहि गए, उमँग चले बहु नीर।
सावन कहे सुन बावरी कर याद बैठी हर घड़ी।शायद कभी फिर भी करे तुम पर करम की वो घड़ी।
खैरा शाह
पद
वृन्दावन कान्हा मुरली बजाई।।घूहा।।
जो न गई सो तो भई है बावरी, समुझि समुझि पछिताई।।गौवन के मुख त्रेन बसत है, बछवा पियत न गाई।।