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टोड़ी, चौताल- हमारी सुरत बिसारी बनवारी हो
हमारी सुरत बिसारी बनवारी हो,सरबस दै-दै हारी, तौहू न भये सपुने अपने मुरारी।
विलास ख़ान
सूफ़ी लेख
संत साहित्य - श्री परशुराम चतुर्वेदी
जब चाहत तब भजन करावत,चाहत देत बिसारी।।1।।