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शे'र
निकल कर ज़ुल्फ़ से पहुँचूँगा क्यूँकर मुसहफ़-ए-रुख़ परअकेला हूँ अँधेरी रात है और दूर मंज़िल है
अकबर वारसी मेरठी
कलाम
शौक़ से ना-कामी की बदौलत कूचा-ए-दिल भी छूट गयासारी उमीदें टूट गईं दिल बैठ गया जी छूट गया
फ़ानी बदायूँनी
ना'त-ओ-मनक़बत
ग़ुबार-ए-कूचा-ए-मिर्ज़ा हूँ नक़्श-ए-आब नहींक़ुर्ब हो के मिट्टी मेरी ख़राब नहीं
इम्दाद अ'ली उ'ल्वी
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ग़ज़ल
मेरे दिल में क्यूँ ख़याल-ए-कूचा-ए-दिल-बर न होबुलबुल-ए-आवारा को याद-ए-चमन क्यूँ-कर न हो
रज़ा फ़िरंगी महल्ली
ग़ज़ल
कूचा-ए-ज़ुल्फ़-ए-सनम में अहल-ए-दिल जाते हैं क्यूँऔर जाते हैं तो दिल सी चीज़ छोड़ आते हैं क्यूँ
आसी गाज़ीपुरी
शे'र
कूचा-ए-क़ातिल में जाकर हाथ से रक्खें तुझेओ दिल-ए-बेताब हमने इसलिए पाला नहीं
मिरर्ज़ा फ़िदा अली शाह मनन
शे'र
कूचा-ए-क़ातिल में मुझको घेर कर लाई है येजीते जी जन्नत में पहुंचा दे क़ज़ा ऐसी तो हो
कैफ़ी हैदराबादी
शे'र
कूचा-ए-क़ातिल में मुझको घेर कर लाई है येजीते जी जन्नत में पहुंचा दे क़ज़ा ऐसी तो हो
कैफ़ी हैदराबादी
ग़ज़ल
शहीद-ए-इ’श्क़-ए-मौला-ए-क़तील-ए-हुब्ब-ए-रहमानेजनाब-ए-ख़्वाजः क़ुतुबुद्दीं इमाम-ए-दीन-ओ-ईमाने
वाहिद बख़्श स्याल
सूफ़ी कहावत
रू-ए ज़ेबा मरहम-ए-दिलहा-ए-ख़स्ता अस्त-ओ-कलीद-ए-दरहा-ए-बस्ता
एक ख़ूबसूरत चेहरा दुखी दिलों के लिए मरहम की तरह होता है, और बंद दरवाजों के लिए कुंजी
वाचिक परंपरा
ना'त-ओ-मनक़बत
गुल-ए-बुस्तान-ए-मा'शूक़ी मह-ए-ताबान-ए-महबूबीनिज़ामुद्दीन सुल्तान-उल-मशाइख़ जान-ए-महबूबी