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कवित्त
नटवर बेष साजि मदन लजाने लाल,
नटवर बेष साजि मदन लजाने लाल,मन हरि लीनो हाल नारिन के जाल को ।
चंद्रकला बाई
दोहा
रूप नगर बस मदन नृप, दृग जासूस लगाइ।
रूप नगर बस मदन नृप, दृग जासूस लगाइ।नहनि मन कौ भेद उन, लीनौ तुरत मंगाइ।।
रसनिधि
दोहा
विनय मलिका - मकसूदन मोहन मदन माधो मच्छ मुरार
मकसूदन मोहन मदन माधो मच्छ मुरारमदहारी श्रीमुकुटघर मधुपुर मल्ल-पछार
दया बाई
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बाउल गान
वॉका नदीर पिछल घाटे पार हवि कि करे रे
मदन मादन, शोषण स्तम्भन मोहनपचवाणेर करवे सधान
गोसाईं विप्र
पद
बलाय ज्याउं मैं तेरे चरण उपर सुं
हीरद कमल मांही, तेरो ध्यान करती हूँ ।।आनंद-घन मदन तात, कमलापति भुवननाथ ।
केशव स्वामी
कवित्त
गरज नगारे भारे वृन्द हरकारे आगे।
'कादर' बिरह सुधि लीजै श्याम सादर जूआये बीर बादर बहादुर मदन के।।
क़ादिर बख़्श
सूफ़ी लेख
रैदास और सहजोबाई की बानी में उपलब्ध रूढ़ियाँ- श्री रमेश चन्द्र दुबे- Ank-2, 1956
कोटि कलप ध्यान अलप, मदन अंतकारी।। जाके लील बरन, अकल ब्रह्म, गले रुण्ड माला।
भारतीय साहित्य पत्रिका
दकनी सूफ़ी काव्य
बलाय ज्याऊँ मै तो चरण ऊपर सूँ ।
हीरद-कमल मॉहीं तेरो ध्यान करती हूँ ।आनन्द घन मदन तात कमलापति भुवन नाथ
केशव स्वामी
कविता
तिल वर्णन- गोरे मुख पर तिल लसे ताहि करो परनाम।
दृग काजर रंजक भरे, अलक फिरंग बँदूक।तिल गोली मन लच्छ को मारे मदन अचूक।।
मुबारक अली बिलग्रामी
सूफ़ी लेख
नवाब-ख़ानख़ाना-चरितम्- ले. श्री विनायक वामन करंबेलकर
अम्बर शम्बर मदनौ तनयौ मीरजी अली च दाराबौ।।4।। वीर-श्रीजहंगीर-साहि-मदन-प्रौढ़-प्रतापोदय-
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
कवित्त
भक्तोद्गार- बिधि को भरोसो सब सृष्टि के बनायबे को
पौन को भरोसो बड़ो चारौ खूट फिरै नाथमोको तो भरोसो एक मोहन मदन को।।
ताज जी
सूफ़ी लेख
सन्तों की प्रेम-साधना- डा. त्रिलोकी नारायण दीक्षित, एम. ए., एल-एल. बी., पीएच. डी.
इन्हीं बाह्याचारों की निन्दा करते हुए बाउल मदन ने कहा थाः----- तोमार पंथ ढाइक्याछे मन्दिरे मस्जेदे।
सम्मेलन पत्रिका
कविता
अलक वर्णन- अलक मुबारक तिय बदन लटकि परी यों साफ।
अलक मुबारक तिय बदन लटकि परी यों साफ।खुस नवीस मुनसी मदन लिख्यो कॉच पर काफ।।
मुबारक अली बिलग्रामी
सूफ़ी लेख
हाफ़िज़ की कविता- शाल़ग्राम श्रीवास्तव
अर्द्ध अर्द्ध लै भाठो रीपी, ब्रह्म अगिनि उदगारी।मूँद मदन कर्म कटि कसमल संतन चुवै अगारी।।
सरस्वती पत्रिका
सूफ़ी लेख
हाफ़िज़ की कविता - शालिग्राम श्रीवास्तव
अर्द्ध अर्द्ध लै भाठो रीपी, ब्रह्म अगिनि उदगारी।मूँद मदन कर्म कटि कसमल संतन चुवै अगारी।।