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सवैया
नेत्रोपालम्भ - मजु मनोहर मूरि लखै तबही सबही पतही तज दीनी
मजु मनोहर मूरि लखै तबही सबही पतही तज दीनीप्राण पखेरू परे तलफै वह रूप के जाल मैं आस-अधीनी
रसखान
सवैया
मुस्कान माधुरी - मैन-मनोहर वन बजै सु सजे तन सोहत पीत पटा है
मैन-मनोहर वन बजै सु सजे तन सोहत पीत पटा हैयौ दमकै चमकै झमकै दुति दामिनि की मनौ स्याम घटा है
रसखान
सवैया
रूप प्रभाव और कुंज लीला - मैन मनोहर ही दुख ददन है सूख कंदन नंद को नंदा
मैन मनोहर ही दुख ददन है सूख कंदन नंद को नंदाबंक बिलोचन की अबलोकनि है दुख योजन प्रेम को फंदा
रसखान
सूफ़ी लेख
उ’र्फ़ी हिन्दी ज़बान में - मक़्बूल हुसैन अहमदपुरी
प्रेम बचन का रूप मनोहर था जैसा सब बाक़ी है(4)
ज़माना
दोहा
संसै रोग संसार सब, नासै करै विचार।।
संसै रोग संसार सब, नासै करै विचार।।कहै मनोहर निरंजनी, यह निहचै निरधार।।
महात्मा मनोहरदास जी
सूफ़ी लेख
संत कबीर की सगुण भक्ति का स्वरूप- गोवर्धननाथ शुक्ल
भजि नारदादि सुकापि बंदित चरन पंकज भामिनी। भजि भजसि भूषण पिया मनोहर, देव देव सिरोमनि।।
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
आज रंग है !
होली खेलत स्याम मनोहर, आवो देखन जाइएमोए रंग रंगो सब कामिनि जामों लाल रजइए
सुमन मिश्रा
सूफ़ी लेख
बिहारी-सतसई-संबंधी साहित्य (बाबू जगन्नाथदास रत्नाकर, बी. ए., काशी)
कुरुबिंद मैं न भानु-सारथी-बरन मैं।। मोहर मनोहर मैं कौंहर मैं है न ऐसी,
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
मधुमालती नामक दो अन्य रचनाएँ - श्रीयुत अगरचंद्र नाहटा
चौपाई।। विधि विरचि ताके वर पाउं। शंकर सुत गणेश मनाउं। चातुर सहचरि सहित रीझाउं। मधुमालती मनोहर गाउं।।
हिंदुस्तानी पत्रिका
पद
चेतावनी - रे चित चेतसि कीन दयाल, दमोदर विवहित जानसि कोई।
कुंभी जल माहि तन तिसु, बाहरि पंष षीरु तिन्ह नाही।पूरन परमानन्द मनोहर, समझि देषु मद माही।।
धन्ना भगत
सूफ़ी लेख
महाकवि सूरदासजी- श्रीयुत पंडित रामचंद्र शुक्ल, काशी।
जो माँगहु सो देहुँ मनोहर यहै बात तेरी खोटी। सूरदास को ठाकुर ठाढ़ो हाथ लकुटि लिए छोटी।।